प्रथम गुरू यूँ ही नहीं कहलाती…

मदर्स डे

डॉ. विनीता राठौड़ 


माँ तो आखिर माँ है होती
प्रथम गुरू यूँ ही नहीं कहलाती

अंगुली पकड़ चलना सिखाती
वाणी को शब्दों में सहज ढालती

संस्कारों की राह पर आगे बढ़ाती
ज्ञानी और गुणी हमें बनाती

सफलता हेतु  निरंतर प्रेरित करती
असफलता  में  निराशा  से  बचाती

गिरने पर उठने को प्रोत्साहित करती
आत्मविश्वास को भी डिगने न देती

सारे दुःख दर्द स्वयं सह लेती
दुःख का साया हम पर पड़ने न देती

सिर को जब भी वो सहलाती
सारी चिंताओं को  हर लेती

सदैव मंगल कामनाएं करती
आशीषों का अम्बार लगाती

संकट की घड़ी में ढाल बन जाती
बुरी नजर से सदा बचाती

हर दीपक  की वो है बाती
जीवन हमारा प्रकाशित करती

शब्दों में उसकी महिमा नहीं समाती
माँ तो आखिर माँ है होती।

( लेखिका राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा में प्राणीशास्त्र की सह आचार्य हैं)




 

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