चलो, आज कुछ अच्छा करते हैं…

मानव धर्म 

सीए. विनय गर्ग  ‘मोहित’


चलो,आज कुछ अच्छा करते हैं,
कष्टों से रोती दुनिया में,
रोते को हंसाया जाए,
निज हित में सोती दुनिया में,
सोते को जगाया जाए।

क्षुधा रोग से पीड़ित जन को,
भोजन आज कराया जाए।
वस्त्र विहीन पीड़ित जन को,
वस्त्र आज पहनाया जाए।
चलो, आज कुछ अच्छा करते हैं।।

धन के पीछे भागते जन को, 
धन का मर्म बताया जाए।
मानवता हो रही है घायल, 
मानव धर्म बताया जाए।।

प्राण वायु वापस पाने को,
पौधा एक लगाया जाए।
प्यासे पक्षी को पीने को,
परिंडा एक लगाया जाए।
चलो, आज कुछ अच्छा करते हैं।।

हाय री दौलत हाय री दौलत,
दौलत दौलत चिल्लाते हो।
साथ न लेकर गया सिकंदर,
फिर काहे तुम भरमाते हो।।

दौलत की गठरी को खोलो,
बाँट के दौलत खुशी मिलेगी।
कर लो सेवा पीड़ित जन की,
इससे तुमको खुशी मिलेगी।
चलो, आज कुछ अच्छा करते हैं।।

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