कटक
ओडिशा हाई कोर्ट (Odisha High Court) ने एक अहम आदेश में साफ किया है कि किसी तीसरे व्यक्ति के लोन में गारंटर बनने पर किसी कर्मचारी की ग्रेच्युटी रोकना कानूनन गलत है। अदालत ने बैंक (Bank) को निर्देश दिया है कि वह रिटायर हुई महिला कर्मचारी को उसकी ग्रेच्युटी तुरंत अदा करे।
दरअसल, कटक सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड (Cuttack Central Co-operative Bank Ltd.) ने अपनी पूर्व डिप्टी मैनेजर सरोजिनी देई की ग्रेच्युटी रोक दी थी। बैंक का कहना था कि सरोजिनी एक व्यक्ति के लोन की गारंटर थीं, और जब वह व्यक्ति डिफॉल्ट कर गया, तो जिम्मेदारी उन पर भी आती है। इसी आधार पर बैंक ने भुगतान से इनकार कर दिया।
लेकिन जॉइंट लेबर कमिश्नर, भुवनेश्वर ने बैंक के इस कदम को गैरकानूनी ठहराते हुए पूरी ग्रेच्युटी का भुगतान करने का आदेश दिया। बैंक ने इस आदेश के खिलाफ अपील की, जो अंततः ओडिशा हाईकोर्ट तक पहुंची।
मुख्य न्यायाधीश हरीश टंडन और जस्टिस मुरहारी श्री रमन की खंडपीठ ने बैंक की दलील खारिज करते हुए कहा—
“ग्रेच्युटी केवल तभी जब्त की जा सकती है जब कर्मचारी को सेवा के दौरान किसी अनुशासनहीनता या आपराधिक कार्य के कारण बर्खास्त किया गया हो। गारंटर बनना ऐसा कोई अपराध नहीं है।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि Payment of Gratuity Act, 1972 की धारा 4(6) में ऐसे मामलों की सीमाएं स्पष्ट हैं, और बैंक का कदम उस दायरे से बाहर था।
इस आदेश के बाद न केवल सरोजिनी देई को राहत मिली है, बल्कि यह फैसला अब उन हजारों कर्मचारियों के लिए नजीर बन सकता है, जिनकी ग्रेच्युटी “थर्ड पार्टी लोन” या “गारंटी लायबिलिटी” के बहाने अटकी हुई है।
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