ओस्लो
नॉर्वेजियन नोबेल समिति (Norwegian Nobel Committee) ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक घोषणा करते हुए वेनेज़ुएला (Venezuela) की विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो (Maria Corina Machado) को नोबेल शांति पुरस्कार 2025 (Nobel Peace Prize 2025) से सम्मानित किया है। उन्हें यह सम्मान देश में लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए उनके अटूट संघर्ष और तानाशाही से लोकतंत्र की ओर शांतिपूर्ण परिवर्तन की लड़ाई के लिए दिया गया है।
इस घोषणा के साथ ही डोनाल्ड ट्रंप की नोबेल शांति पुरस्कार पाने की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है। पिछले कुछ हफ्तों से ट्रंप ने खुद को इस पुरस्कार की दौड़ में बताया था, लेकिन कमेटी ने मचाडो के साहस और दृढ़ता को सर्वोच्च मान्यता दी।
नोबेल समिति ने अपने बयान में कहा —
“जब सत्तावादी ताकतें सत्ता पर कब्जा कर लेती हैं, तब आज़ादी के सच्चे रक्षक वही होते हैं जो चुप रहने से इनकार करते हैं। मचाडो ने अपने जीवन को खतरे में डालकर भी अपने लोगों के लिए संघर्ष किया — यही असली लोकतंत्र की आत्मा है।”
In the past year, #NobelPeacePrize laureate Maria Corina Machado has been forced to live in hiding. Despite serious threats against her life she has remained in the country, a choice that has inspired millions of people.
— The Nobel Prize (@NobelPrize) October 10, 2025
When authoritarians seize power, it is crucial to… pic.twitter.com/GA3C7asz4Y
मारिया मचाडो पिछले एक साल से छिपकर जीवन बिता रही थीं, लेकिन फिर भी उन्होंने देश नहीं छोड़ा। उनके इस फैसले ने लाखों वेनेज़ुएलावासियों को प्रेरित किया। वे 2024 के चुनावों से पहले विपक्ष की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार थीं, लेकिन तानाशाही शासन ने उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी। इसके बाद उन्होंने विपक्षी उम्मीदवार एडमुंडो गोंजालेज़ उरुटिया का समर्थन किया और पूरे देश में फ्री और फेयर इलेक्शन के लिए लोगों को संगठित किया।
धमकियों, गिरफ्तारियों और यातना के बावजूद हजारों वॉलंटियर्स ने मतदान केंद्रों की निगरानी की। लेकिन शासन ने परिणाम मानने से इंकार कर दिया और सत्ता पर काबिज रहा।
नोबेल कमेटी ने कहा —
“वेनेज़ुएला कभी लोकतंत्र का प्रतीक था, आज वह भय और दमन का पर्याय बन गया है। मचाडो जैसी आवाज़ें हमें याद दिलाती हैं कि स्वतंत्रता कभी मुफ्त नहीं मिलती — उसे साहस और बलिदान से हासिल करना पड़ता है।”
आज जब वेनेज़ुएला भयंकर आर्थिक और मानवीय संकट से गुजर रहा है, मचाडो की यह जीत सिर्फ एक महिला की नहीं बल्कि पूरे लोकतांत्रिक विश्व की जीत मानी जा रही है।
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