विदेशी कंपनियों को डिजिटल शिक्षा का एकाधिकार देना देश के लिए खतरनाक, ABRSM ने जताई चिंता

नई दिल्ली 

अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ(ABRSM) ने ऑनलाइन शिक्षा में विदेशी कंपनियों को डिजिटल एकाधिकार देने को देश के लिए खतरनाक बताते हुए गहरी चिंता जताई है और कहा है कि ऑनलाइन शिक्षा में डाटा की वितरण प्रणाली अत्यधिक तकनीकी है, जिसमें अधिकांश तकनीकी संसाधन  स्वदेशी नहीं हैं। विदेशी कंपनियों को इस तरह का डिजिटल एकाधिकार देना देश की अखंडता और शिक्षा के लिए खतरनाक हो सकता है। ऑफलाइन शिक्षा के उलट ऑनलाइन शिक्षा में शिक्षक के मूल्यांकन का अधिकार छात्रों को दिया जाता है। इससे प्राचीन भारतीय गुरु शिष्य परंपरा को क्षति पहुंची है। ABRSM ने यूजीसी के अध्यक्ष को एक पत्र भेजकर अपनी इस चिंता से अवगत कराया है और कहा कि ऐसा लगता है कि अधिकांश अवधारणाएं पश्चिम से उधार ली गई हैं और भारतीय परिस्थितियों की अनदेखी की गई है।

ABRSM ने  कहा है कि अधिगम के मिश्रित तरीके की अवधारणा पर कोई एतराज नहीं है, लेकिन इसमें आने वाली चिंताएं तरह-तरह की आशंकाएं खड़ी कर रही हैं। इसलिए बेहतर होगा कि इन चिंताओं को पहले दूर किया जाए। मिश्रित योजना के क्रियान्वयन से पहले तकनीकी और भौतिक बुनियादी ढांचे का निर्माण हो और इसके लिए पर्याप्त बजटीय प्रावधान किए जाने चाहिए। ABRSM ने अपने इस पत्र में वर्तमान परिस्थिति में शिक्षा व्यवस्था के संबंध में छात्रों के सीखने और शिक्षकों के सिखाने की मिश्रित पद्धति पर करीब एक दर्जन सुझाव भी यूजीसी के अध्यक्ष को दिए हैं। एबीआरएसएम का मानना है कि ऑनलाइन सीखने पर अतिरिक्त ध्यान समग्र विकास के लक्ष्यों में बाधा डाल सकता है जिसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उल्लेखित संज्ञानात्मक कौशल के साथ-साथ सामाजिक, नैतिक और भावनात्मक कौशल का विकास शामिल है।

ABRSM ने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा में डाटा की वितरण प्रणाली अत्यधिक तकनीकी है, जिसमें अधिकांश तकनीकी संसाधन  स्वदेशी नहीं हैं। विदेशी कंपनियों को इस तरह का डिजिटल एकाधिकार देना देश की अखंडता और शिक्षा के लिए खतरनाक हो सकता है। ऑफ लाइन शिक्षा के उलट ऑनलाइन शिक्षा में शिक्षक के मूल्यांकन का अधिकार छात्रों को दिया जाता है। इससे प्राचीन भारतीय गुरु शिष्य परंपरा को क्षति पहुंची है।

पहले कुछ व्यावहारिक परेशनियों का निदान किया जाए
ABRSM के महामंत्री शिवानंद सिंदनकेरा ने कहा कि इस महामारी के कारण ऑनलाइन शिक्षा एक मजबूरी और जरूरत बन गई है लेकिन पहुंच और सीखने के परिणाम के बारे में ऑनलाइन शिक्षा के विषय में छात्रों के अनुभव और परिणाम बहुत उत्साहजनक नहीं हैं। शिक्षा संस्थानों के 70% से अधिक विद्यार्थी अर्ध शहरी अथवा ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं। इनमें अधिकांश बच्चे निम्न मध्यवर्गीय परिवारों से आते हैं। महामारी के समय में रोजी-रोटी के संकट से जूझते परिवारों से नवीनतम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, अच्छी इंटरनेट गति, और भंडारण क्षमता की अपेक्षा करना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि संगठन इस बात को अच्छी तरह समझता है कि शिक्षा के सभी स्तरों पर अधिगम के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी की आवश्यकता जरूरी है। पर इसको लागू करने से पहले कुछ व्यावहारिक परेशनियों का निदान किया जाना चाहिए।

आवश्यक उपकरणों की कमियों से जूझ रहे हैं शिक्षण संस्थान
एबीआरएसएम का मानना है कि आवश्यक उपकरणों के अभाव में विद्यार्थियों की नियमितता एवं अधिगम गति प्रभावित हुई है। कई उच्च शिक्षा संस्थान विशेष रूप से राज्य के कॉलेज स्वयं ऐसी उन्नत आवश्यकताओं की कमी से जूझ रहे हैं। संस्थानों में ऑनलाइन शिक्षा के लिए शीर्ष इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, स्टूडियो और उचित तकनीकी कर्मचारियों का अभाव है। शिक्षक एवं विद्यार्थियों के समुचित अनुपात का उच्च शिक्षण संस्थानों में अभाव है। इसलिए मिश्रित योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए पहले तकनीकी और भौतिक बुनियादी ढांचे का निर्माण हो और इसके लिए पर्याप्त बजटीय प्रावधान किए जाने चाहिए।

तकनीकी दक्षता की कमी
महामंत्री शिवानंद सिंदनकेरा ने कहा कि शिक्षा के उच्च स्तर पर छात्रों की आवश्यकता रुचि और सुविधा के आधार पर छात्र केंद्रित पाठ्यक्रम की अवधारणा प्रशंसनीय है, किंतु यहां भी छात्र को मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। बहुत सारे शोधों में यह पाया गया है कि वयस्क विद्यार्थी अपनी अन्य समस्याओं में उलझे होकर यूजीसी के कार्यक्रम ‘मूक’ के माध्यम से अधिगम से उतनी तल्लीनता से नहीं जुड़ पाते, जितना परंपरागत पाठ्यक्रम में जुड़ पाते हैं।

सेल्फ पेसिंग सिद्धांत एक छोटे से प्रतिशत विद्यार्थियों को तेज गति से आगे बढ़ के लिए प्रेरित करता है परंतु धीमी गति से सीखने वाले विद्यार्थी पीछे रह जाते हैं और अधिक समानता को जन्म देते हैं। शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों की ओर से तकनीकी दक्षता की कमी के कारण संपूर्ण शिक्षण कार्यक्रम विफल हो सकता है। प्रयोगशाला आधारित पाठ्यक्रम के शिक्षण के लिए ऑनलाइन वर्चुअल लैब प्लेटफॉर्म अप्रभावी सिद्ध हुए हैं। प्राकृतिक विज्ञान, प्रौद्योगिकी जैसे विषयों को विशुद्ध रूप से आभासी मोड में नहीं सीखा जा सकता। ये कक्षा ऑफलाइन मोड में ही संचालित की जानी चाहिए।

नए शिक्षकों की नियुक्ति पर मंडराया खतरा 
एबीआरएसएम ने चिंता जताई कि 70 प्रतिशत से अधिक ऑनलाइन शिक्षा को स्वीकार करने से नए शिक्षकों की नियुक्ति पर खतरा पैदा हो गया है। एबीआरएसएम ने हाल ही में यूजीसी द्वारा जारी एक नोटिस का हवाला देते हुए पत्र में कहा कि मिश्रित माध्यम में स्वयं कोर्स में 40% या उससे अधिक ऑनलाइन शिक्षा स्वीकार्य है। इस तरह अधिगम का लगभग 70 प्रतिशत ऑनलाइन हो जाता है, जो उच्च शिक्षा को केवल दूरस्थ शिक्षा में बदल देता है। अगर सरकार मितव्ययता के नाम पर इस माध्यम को अपनाती है तो शिक्षकों का कार्यभार कम होगा और नए शिक्षकों की नियुक्ति पर खतरा पैदा हो जाएगा। जबकि पहले से ही उच्च शिक्षा संस्थानों में बहुत सारे पद रिक्त हैं।

एबीआरएसएम का साफ मत है कि पाठ्यक्रम में शिक्षा का ऑनलाइन तरीका स्वयं आदि सहित 20% से अधिक नहीं होना चाहिए और विश्वविद्यालयों को मिश्रित मोड में सीखने का विकल्प या तो स्वयं कार्यक्रम या सीखने के अन्य ऑनलाइन तरीकों का विकल्प दिया जाना चाहिए।

एबीआरएसएम का सुझाव है कि सर्वप्रथम सीमित रूप में सीखने के मिश्रित तरीके को कुछ प्रमुख राष्ट्रीय उच्च शिक्षा संस्थानों में लागू किया जाना चाहिए और फीडबैक, सर्वेक्षण, विश्लेषण और संशोधनों के आधार पर धीरे-धीरे योजनाबद्ध तरीके से अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों में मिश्रित मोड में लागू करना चाहिए।

नकल को बढ़ावा देंगी ‘ओपन बुक एग्जामिनेशन’ और  ‘एग्जाम फ्रॉम होम’
एबीआरएसएम ने पात्र में एक और आशंका जताई है। उसने कहा है मिश्रित प्रणाली में परीक्षण कार्य सबसे अधिक कठिन है। ‘ओपन बुक एग्जामिनेशन’ या ‘एग्जाम फ्रॉम होम’ जैसी अवधारणाएं ऑनलाइन संसाधनों से नकल को बढ़ावा देंगी। कक्षा कार्य में साहित्यिक चोरी को पकड़ना एक अत्यंत दुरुह कार्य होगा।

बहु वैकल्पिक प्रश्नों के आधार पर उम्मीदवार की क्षमता का ठीक से आंकलन संभव नहीं है। मांग मोड़ पर परीक्षा अराजकता की स्थिति उत्पन्न कर सकती है। इसलिए  इन विधियों को पहले दो-तीन चयनित पाठ्यक्रमों या संस्थानों में लागू किया जाना चाहिए और फिर फीडबैक या परिणामों का विश्लेषण करना चाहिए। महामारी की स्थिति में जल्दबाजी में मिश्रित व्यवस्था को लागू करना उचित नहीं है।

महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. जे.पी. सिंघल, राष्ट्रीय संगठन मंत्री महेंद्र कपूर एवं महामंत्री शिवानंद सिंदनकेरा के नेतृत्व में ये सुझाव तैयार कर भेजे गए हैं।




 

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