आस्था का केन्द्र लोकदेवता न्यौठा का बाबू महाराजा का मन्दिर

हलैना (भरतपुर )

विष्णु मित्तल  


राजस्थान के भरतपुर जिले में हलैना से करीब 7 किमी दूर एवं नदबई उपखण्ड के गांव न्यौठा  स्थित लोकदेवता श्रीबाबू महाराज का मन्दिर आस्था का केन्द्र है, जो गुर्जर समाज का आराध्य देव हैं। मन्दिर करीब 500 साल से अधिक पुराना बताया जाता है। गुर्जर समुदाय के अलावा अन्य  समाज के लोगों की भी आस्था है। इस गांव में  बाबू बाबा के अलावा एक दर्जन देवी.देवताओं के धार्मिक स्थल बने हुए हैं।

वर्ष में एक बार लक्खी मेला तथा हर माह  मेला लगता है।  मन्दिर के दर्शन एवं मेला में देश-विदेश के लोग आते हैं जिसमें सर्वाधिक संख्या कुष्ठ, चर्म रोगी एवं सन्तानहीन महिलाओं  की होती है। भक्त दर्शन कर बाबा की धुना की रज लगाए, चीनी की प्रसादी चढ़ाते हैं और अन्नकूट प्रसादी ग्रहण कर बाबू बाबा का गुणगान करते हैं।

गांव न्यौंठा निवासी लखनलाल पाठक एवं पुरूषोत्तम गुर्जर बताते हैं  कि गांव न्यौठा करीब 500 साल से अधिक पुराना गावं है,जहां गुर्जर, पण्डित, वैश्य के अलावा अन्य समाज के लोग रहते हैं। गांव के  प्राचीन बाबू महाराज मन्दिर को लेकर अनेक किंदवंतियां हैं। बुजुर्ग बताते हैं कि गांव का एक ग्वाला दुधारू मवेशियां चराने जंगल में जाता था। एकबार उन मवेशियों से एक गाय रोजना पोखर के पास जाती और एक टीले पर उसके चारों थन से दूध की धार निकलने लगी।

ग्वाला की समझ में कुछ नहीं आया। कई दिन ऐसा हुआ। वह चुप लगा नजारा देखता। ग्वाला ने गाय का पीछा किया। टीले के पास गया जहां उसे चांदी का सिक्का मिला, ग्वाला ने घर पर जा कर गाय की बात बताई। सभी ने ग्वाला की बात पर विश्वास नहीं किया और ग्वाला को डरा कर चुप कर दिया। ग्वाला जिसके सिर पर हाथ रख देते वह खुश हो जाता। उन्होंने बताया, एक बार गांव की महिलाएं  पोखर पर मिट्टी लेने गई, जहां सास-बहू  मिट्टी खोद रही थी, टीले के पास खुदाई करते समय बहू को भूमि से आवाज सुनाई दी, बहिन मुझे निकाल ले, सास-बहू डर गई, साथ गई अन्य एक महिला ने टीले के खुदाई की जिसमें प्रतिमा निकली।

गांव में प्रतिमा को लेकर अनेक चर्चा होने लगी। गांव के लोगों ने पोखर किनारे एक चबूतरा बना कर प्रतिमा को स्थापित कर दिया। गांव के शिक्षाविद  पुरूषोत्तम पटेल एवं राधेलाल ने  बताया कि बाबू महाराज अवतार की भूमि चम्बल नदी किनारे है। जहां हजारों साल पहले 80 साल की सिया ने कठोर तप किया जो कुष्ठरोग से पीड़ित थी।  सन्तान से वंचित सिया के बाबू महाराज की कृपा से पुत्र की प्राप्ति हुई और कुष्ठरोग से छुटकारा मिला। बाबू महाराज ने सिया को वरदान दिया कि जो कुष्ठ व चर्मरोग से पीड़ित  तथा सन्तानहीन महिला निस्वार्थ भाव से मानव सेवा एवं मूक.बधिर प्राणियों की सेवा करेगा एवं मांस- मदिरा का  सेवन नहीं  करेगा, उसे कुष्ठरोग से छुटकारा मिलेगा  एवं पुत्र की प्राप्ति होगी। उक्त प्रकरण की चर्चा दूर-दूर तक फैल गई और लोग बाबू महाराज की पूजा अर्चना करने लगे।

बाबा की रज से मिटता है चर्मरोग
गांव न्यौठा निवासी सुमरन गुर्जर बताते हैं कि बाबू महाराज मन्दिर पर करीब 465 साल से धुना जल रहा है जिसकी रज लगाने से कुष्ठ, सफेद धब्बा एवं अन्य चर्मरोग से छुटकारा मिलता है और बाबा  के दर्शन एवं धुना की परिक्रमा लगाने से सन्तान की प्राप्ति होती है। मेला के दिन 4 से 5 लाख रज की पुडियां वितरण हो जाती है। बाबा की रज पर आमजन का  विश्वास कायम है।

31 लाख से हो रहा है जीर्णोद्धार
श्री बाबू महाराज मेला कमेटी संयोजक पुरूषोत्तम अध्यापक एवं सचिव लखनलाल पाठक बताते हैं  कि मेला एवं अन्य कार्यक्रम के आयोजन पर आए चढ़ावे  से मन्दिर का जीर्णोद्धार तथा मेला का आयोजन किया जाता है। वर्ष 2001 से आज तक करीब 31 लाख का चढ़ावा आया जिससे हलैना-नदबई सड़क  मार्ग के पास प्रवेश द्वार, मन्दिर, धर्मशाला  आदि का निर्माण कराया। अब मन्दिरमें  बन्ध वारैठा एवं बंसी पहाड़पुर का पत्थर लगवाया जा रहा है जिस पर करीब 31 लाख का खर्च का अनुमान है।

465 साल में पहली बार बाबा का मेला स्थागित
मेला कमेटी के संयोजक पुरूषोत्तम व सचिव लखनलाल पाठक ने बताया कि 20 अगस्त, 2020 को बाबू महाराज का मेला लगना था, लेकिन कोरोना महामारी के कारण स्वीकृति प्रदान नहीं मिलने पर स्थागित कर दिया। ये मेला 465 साल में पहली बार स्थागित हुआ। मेले के दिन केवल महाआरती एवं दर्शन के आयोजन किए।




 

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