मेरी चंचल बातों पर टोका-टोकी
टीका टिप्पणी आप सब ने बहुत की
नए घर – परिवेश और रिश्तों को निभाने की
जद्दोजहद में, मैं भी तो बहुत सहा करती थी
पिता रूप में बिटिया की पीड़ा समझी
काश! पुरूष रूप में स्त्री मन की व्यथा भी समझी होती।
(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा में प्राणीशास्त्र की सह आचार्य हैं)