सिर्फ ट्रैप काफी नहीं, रिश्वत केस में हाईकोर्ट ने खींची लकीर | जानिए पूरा मामला

राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने 2007 के भ्रष्टाचार मामले में RPF के तीन कर्मचारियों को बरी किया। कोर्ट ने कहा—सिर्फ ट्रैप या धन बरामदगी से रिश्वत का अपराध सिद्ध नहीं होता।

जयपुर 

राजस्थान हाईकोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि केवल ट्रैप की कार्यवाही या रिश्वत की रकम बरामद हो जाना, किसी सरकारी कर्मचारी को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है। अदालत ने दो टूक कहा कि अभियोजन को यह साबित करना अनिवार्य है कि रिश्वत की स्पष्ट मांग की गई, उसे जानबूझकर स्वीकार किया गया और उसके बदले कोई लंबित या प्रभावी कार्य मौजूद था। बिना इन ठोस तथ्यों के सिर्फ ट्रैप के आधार पर सज़ा देना कानून की कसौटी पर टिक नहीं सकता।

राजस्थान हाईकोर्ट ने शनिवार को वर्ष 2007 के एक कथित भ्रष्टाचार मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए यह टिप्पणी की और रेलवे पुलिस बल (RPF) के तीन कर्मचारियों को बरी कर दिया। जस्टिस आनंद शर्मा की एकलपीठ ने साफ कहा कि केवल ट्रैप (रिश्वत के साथ पकड़े जाना) किसी आरोपी को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सिर्फ धन की बरामदगी यह साबित नहीं करती कि आरोपी ने भ्रष्टाचार अधिनियम की धारा 20 के तहत अपराध किया है। इसी तरह, केवल यह आरोप लगाना कि आरोपी ने अपराधजनक दुराचार किया, धारा 13(1)(d) के तहत सजा देने के लिए पर्याप्त आधार नहीं बनता।

हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष पर यह दायित्व है कि वह यह ठोस रूप से साबित करे कि सरकारी कर्मचारी ने जानबूझकर, बेईमानी या धोखाधड़ी से स्वयं या किसी अन्य के लिए आर्थिक लाभ प्राप्त करने का प्रयास किया।

क्या था मामला

दरअसल, RPF के कर्मचारी कैलाश चंद सैनी, जगवीर सिंह और संवर लाल मीणा को जुलाई 2007 में एसीबी टीम ने सीकर में एक व्यक्ति चिरंजी लाल से 5,000 रुपये की रिश्वत लेते हुए पकड़ने का दावा किया था। आरोप था कि यह रकम शिकायतकर्ता के भाई का नाम एक आपराधिक मामले से हटाने के लिए मांगी गई थी।

शिकायत की पृष्ठभूमि

शिकायत के अनुसार, 22 जून 2007 को शिकायतकर्ता जयपुर में एलआईसी प्रीमियम जमा कराने गया था। इसी दौरान उसका भाई रामनिवास टिकट लेकर नगर परिषद के पास बाहर आया, जहां रेलवे अधिकारी आरएस कसाना ने उसे रोककर अवैध टिकट बिक्री का आरोप लगाया और टिकट जब्त कर लिए। अगले दिन दोनों भाइयों के खिलाफ RPF चौकी में मामला दर्ज हुआ और उन्हें चौकी बुलाया गया।

आरोप है कि जब शिकायतकर्ता चौकी में तत्कालीन प्रभारी कैलाश चंद सैनी से मिला, तो उससे रिश्वत मांगी गई। इसके बाद उसने एसीबी को सूचना दी और ट्रैप की कार्रवाई हुई, जिसमें संवर लाल मीणा से धन बरामद होने का दावा किया गया।

ट्रायल कोर्ट का फैसला और हाईकोर्ट की टिप्पणी

इस मामले में तीनों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7, 13(1)(d), 13(2) और आईपीसी की धारा 120-बी के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। वर्ष 2023 में जयपुर स्थित एसीबी की विशेष अदालत ने तीनों को एक वर्ष का कारावास और 5,000 रुपये जुर्माना सुनाया था, जिसे आरोपियों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट माधव मित्र ने दलील दी कि शिकायतकर्ता और उसके भाई के खिलाफ मामला सही पाया गया था। उन्होंने बताया कि कैलाश चंद सैनी ने 24 जुलाई 2007 को जांच पूरी कर चार्जशीट अनुमोदन हेतु डीएससी कार्यालय भेज दी थी, ऐसे में उस समय शिकायतकर्ता से जुड़ा कोई कार्य उसके पास लंबित नहीं था।

हाईकोर्ट ने एसीबी अदालत का फैसला रद्द करते हुए कहा कि अभियुक्तों द्वारा किसी अनुचित लाभ की मांग या प्राप्ति का कोई ठोस कारण या सबूत सामने नहीं आया। अदालत ने यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट सबूतों की सटीक व्याख्या करने में असफल रहा और अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि रिश्वत की मांग की गई, स्वीकार की गई या कोई लंबित कार्य मौजूद था।

निर्णय में यह भी दोहराया गया कि कानून का स्थापित सिद्धांत है कि आरोपी तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक दोष संदेह से परे सिद्ध न हो जाए, और इस दायित्व का निर्वहन अभियोजन को करना होता है।

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