भाजपा में सिर फुटब्बल: Uttarakhand सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को देना पड़ा इस्तीफा, चार साल का कार्यकाल पूरा होने से नौ दिन पहले ही छोड़नी पड़ी मुख्यमंत्री की कुर्सी, कल नए नेता का फैसला

देहरादून 

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आखिरकार उत्तराखंड भाजपा में चार दिन से चल रही सिर फुटबब्ल उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफ़ा देने के बाद आज थम गई। रावत ने 9 मार्च को शाम राजभवन पहुंचकर राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को अपना इस्तीफा सौंप दिया। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 18 मार्च, 2017 को राज्य के नौवें मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता संभाली थी। त्रिवेंद्र को अपना चार साल का कार्यकाल पूर्ण होने से नौ दिन पहले ही मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी। अब त्रिवेंद्र भी उत्तराखंड के उन पूर्व मुख्यमंत्रियों की सूची में शामिल हो गए हैं, जो अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। उत्तराखंड में केवल नारायण दत्त तिवारी ही अब तक पांच साल का कार्यकाल पूर्ण करने वाले मुख्यमंत्री रहे हैं।

उत्तराखंड भाजपा विधायक दल की बैठक 10 मार्च को 
उत्तराखंड भाजपा विधायक दल की बैठक 10 मार्च को होगी जिसमें पर्यवेक्षक के रूप में भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह एवं प्रदेश प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम हिस्सा लेंगे। माना जा रहा है कि इस बैठक में विधानमंडल दल के नए नेता का चुनाव किया जाएगा।
अपना इस्तीफ़ा देने से पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत केंद्रीय नेतृत्व के बुलावे पर दिल्ली पहुंचे थे। दिल्ली में उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात हुई। मुख्यमंत्री ने भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख व राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी के आवास पर जाकर उनसे भी भेंट की।
मुख्यमंत्री मंगलवार सुबह लगभग 11 बजे दिल्ली से देहरादून पहुंचे। जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर समर्थकों ने उनका स्वागत किया। हालांकि एयरपोर्ट पर मुख्यमंत्री के साथ दिल्ली से से लौटे विधायक मुन्ना सिंह चौहान के अलावा कोई विधायक या मंत्री नहीं पहुंचा। मुख्यमंत्री दोपहर लगभग 12 बजे देहरादून में मुख्यमंत्री आवास पहुंचे, जहां धीरे-धीरे उनके समर्थक जुटने लगे। मुख्यमंत्री आवास पर उनके समर्थकों ने काफी देर तक नारेबाजी भी की।
मुख्यमंत्री के देहरादून पहुंचते ही सियासी गलियारों में चर्चा शुरू हो गई कि वह आज ही इस्तीफा दे देंगे।

ये हैं नए मुख्यमंत्री के दावेदार 
नए मुख्यमंत्री के लिए सांसद अनिल बलूनी, अजय भट्ट और प्रदेश सरकार के मंत्री धन सिंह रावत प्रबल दावेदार बताए जा रहे हैं। इसके अलावा सतपाल महाराज का नाम भी रेस मे शामिल है। उन्होंने हाल ही में संघ के प्रणुख नेताओं से इस सिलसिले में मुलाकात की थी। बताया जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाने का फैसला पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट के आधार पर लिया है। पर्यवेक्षकों ने कोर ग्रुप और प्रमुख विधायकों-सांसदों की राय के आधार पर केंद्रीय नेतृत्व को बताया है कि राज्य में अगले साल होने वाले चुनाव को लेकर स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। इसके बाद से ही राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की भूमिका तैयार हो गई थी। सूत्रों के अनुसार, उत्तराखंड में असंतुष्ट नेताओं सहित बेलगाम होती ब्यूरोक्रेसी सहित मंत्रिमंडल विस्तार में देरी बातों का उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट के आधार पर ही सीएम त्रिवेंद्र के भाग्य का फैसला हुआ है। जब त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दिल्ली में बीजेपी अध्यक्ष  जेपी नड्डा से मुलाकात की थी, तो उन्हें इस बारे में सूचित कर दिया गया था।

जब से उत्तराखंड अलग राज्य बना तभी से अस्थिरता
जब से उत्तराखंड अलग राज्य बना तभी से वहां अस्थिरता चल रही है। उत्तरप्रदेश से अलग होने के बाद उत्तराखंड में भाजपा की सरकार बनी। इस दौरान दो साल के भीतर ही दो मुख्यमंत्री बन गए। सबसे पहले नित्यानंद स्वामी 9 नवंबर, 2000 को मुख्यमंत्री बने। इसके एक साल बाद भाजपा के नेताओं ने उनके खिलाफ मोर्च खोल दिया। उन्हें 29 अक्टूबर, 2001 को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद भाजपा ने उस समय के दिग्गज नेता भगत सिंह कोश्यारी को विधायक दल का नेता चुना। इसके बाद वह 1 मार्च 2002 तक राज्य की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहे। 2002 में विधानसभा चुनाव हुए। इसमें भाजपा कोश्यारी के नेतृत्व में राज्य का चुनाव लड़ी थी। इस चुनाव में सत्ता खिसकर कांग्रेस के हाथ चली गई। कोश्यारी 123 दिन तक ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे। 2002 चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने और पांच साल, यानी 2007 तक मुख्यमंत्री रहे। 2007 में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। भाजपा को राज्य में पूर्ण बहुमत मिला। इस दौरान पांच साल के कार्यकाल में तीन बार मुख्यमंत्री का चेहरा बदला गया। 8 मार्च 2007 को भुवनचंद्र खंडूरी मुख्यमंत्री बने, लेकिन 23 जून 2009 को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद उनकी जगह 24 जून 2009 को भाजपा ने रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन चुनाव से 4 महीने पहले उनकी कुर्सी चली गई। उनकी जगह दोबारा 10 सितंबर, 2011 को भुवनचंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन 2012 के चुनाव में भाजपा की वापसी नहीं हुई। कांग्रेस की सरकार बनी। 5 साल में दो मुख्यमंत्री बदले गए। 13 मार्च 2012 को विजय बहुगुणा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, इसके दो साल बाद उन्हें कुर्सी छोड़ने पड़ी। 1 फरवरी, 2014 को हरीश रावत मुख्यमंत्री बने, लेकिन रावत को विधायकों की बगावत के बाद पद से इस्तीफा देना पड़ा। 2016 में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा। रावत को कोर्ट से राहत मिली और वे फिर मुख्यमंत्री बने। 2017 में फिर से राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ। भाजपा की सरकार बनी। इसके बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत को 18 मार्च, 2017 को मुख्यमंत्री बनाया गया। तब से वह राज्य में मुख्यमंत्री हैं।





 

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