नया सवेरा

सीए विनय गर्ग, भरतपुर
ये काल रात्रि अब अंतिम है,
कल फ़िर इक नया सवेरा है।
ग़म के सागर छूट गए सब,
खुशियों का नया बसेरा है।।1
शुरू करो तुम नवजीवन,
जहां बस खुशियों का डेरा है।
चहुंओर जहाँ हो बस खुशबू,
वहां आनंदों का घेरा है।। 2
जब इतना है विश्वास तुझे,
वो हाथ न तेरा छोड़ेगा।
बीच भंवर में छोड़ तुझे,
वो तुझसे मुँह न मोडेगा।। 3
फिर व्यर्थ में क्यूँ तू रोता है,
इस अंधकार में सोता है।
जब है विश्वास तुझे उस पर,
तो फिर धीरज क्यूँ खोता हूं।। 4
ये काल रात्रि अब अंतिम है,
कल फ़िर इक नया सवेरा है।
ग़म के सागर छूट गए सब,
खुशियो का नया बसेरा है।। 5
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