डॉ. केबी शर्मा, सेवानिवृत एसोसिएट प्रोफेसर
देश के सबसे बड़े प्रदेश राजस्थान में राज्य कर्मचारियों का एक अंश आपको ऐसा भी मिलेगा जिनकी बिना बाधा की 25-30 वर्षों की सेवा अवधि रिकॉर्ड में सेवानिवृति पर दिए जाने वाले परिलाभों के लिए दो अलग अलग नियुक्ति तिथि से गणना की जाती है। राज्य की अनुदानित संस्थाओं से समायोजित कार्मिकों के सेवा नियमों का विश्लेषण करें तो यही सामने आता है। यानी ये ऐसे शिक्षाकर्मी हैं, जिनकी पूरी सेवा तो एक थी—पर नियुक्ति की तारीख दो-दो बना दी गई। नतीजा यह कि 25–30 साल की बिना बाधा की सेवा देने के बावजूद ये शिक्षक पेंशन से वंचित कर दिए गए।
राज्य सरकार की अनुदानित संस्थाओं से जुलाई 2011 में समायोजित किए गए लगभग 3500 शिक्षाकर्मियों को आज भी न्याय नहीं मिला है। उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के स्पष्ट निर्णयों के बावजूद उन्हें उनकी अनुदानित संस्था में पहली नियुक्ति तिथि से पेंशन का अधिकार नहीं दिया गया।
नियम भी हैं, आदेश भी… पर नहीं है पेंशन
राजस्थान सेवा नियमों और 1996 के पेंशन नियमों के अनुसार सेवा अवधि की गणना पहली नियुक्ति से होनी चाहिए। समायोजित कार्मिकों ने नियमित, अनुमोदित और स्थायी पदों पर कार्य करते हुए राज्य सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रियाओं में चयनित होकर सेवाएं दी थीं। इसके बावजूद इन्हें 2011 की समायोजन तिथि से नई नियुक्ति मानते हुए एनपीएस योजना में डाल दिया गया, जबकि ये 2004 से पहले ही नियुक्त थे।
विचित्र विसंगति: एक सेवा, दो तिथि
इन शिक्षकों को सेवा में रहते हुए तो प्रथम नियुक्ति से ही कैरियर एडवांसमेंट, ग्रेच्युइटी, उपार्जित अवकाश आदि लाभ दिए गए — लेकिन जब पेंशन की बात आई तो 2011 की तारीख थोप दी गई। परिणामस्वरूप, इनकी सेवा अवधि 10 वर्ष से कम मानी गई और पेंशन से हाथ धोना पड़ा।
‘सरकारी सुराज’ और न्याय की जद्दोजहद
राजस्थान सेवानिवृत समायोजित शिक्षक कर्मचारी मंच के मुख्य संचालक विजय उपाध्याय बताते हैं कि इन शिक्षकों ने विगत वर्षों में 200 से अधिक ज्ञापन, अनगिनत व्यक्तिगत अपीलें, और विभिन्न न्यायालयों के निर्णयों की प्रति सहित दस्तावेज़ भेजे, लेकिन समाधान नहीं हुआ।
हद तो इस प्रकरण में तब हो गई जब उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में इन कार्मिकों के पक्ष में निर्णय आने के बाद तत्कालीन राज्य सरकार ने मूल आदेश का रिव्यु करवा कर इन कार्मिकों को न्यायिक प्रक्रिया में फंसा कर ऐसा झटका दिया कि अब ये अनंत समय तक वैधानिक निर्णय का इन्तजार करने के लिए मजबूर हैं। उपाध्याय ने बताया कि देश के इतिहास में शायद ही ऐसा कोई प्रकरण हो जहाँ पेंशन के मामले में चुनिन्दा राज्य कर्मचारियों की ऐसी दुर्गति में हुई हो।
‘आश्वासन बहुत, समाधान शून्य’
“यह देश के इतिहास का संभवतः पहला ऐसा मामला है जहां कुछ चुनिंदा पेंशनर्स को उनकी सेवाओं के लिए दो नियुक्ति तिथि देकर पेंशन से वंचित किया गया है। ये कर्मचारी मात्र 0.6% हैं, लेकिन सबसे ज़्यादा उपेक्षित।”
आँखें पथराईं, न्याय नहीं आया
इस निराशाजनक दौर में कई शिक्षाकर्मी वृद्धावस्था, आर्थिक असुरक्षा और बीमारियों से जूझते हुए दुनिया से चले गए। जिनके पास अब भी जीवन बचा है, वे हर दरवाजे पर दस्तक देते-देते थक चुके हैं, लेकिन न्याय नहीं मिला।
उम्मीद की आखिरी लौ
अब इन समायोजित शिक्षकों की आखिरी उम्मीद यह है कि वर्तमान राज्य सरकार इस संवेदनशील प्रकरण को स्वतः संज्ञान में लेकर, उनके साथ न्याय करेगी। ताकि जीवन के अंतिम पड़ाव पर उन्हें सम्मान के साथ जीने का अधिकार मिल सके — जैसा कि एक लोक कल्याणकारी राज्य का संकल्प होना चाहिए।
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