जयपुर
राजस्थान में लंबे समय से अटके पड़े पंचायत और निकाय चुनाव को लेकर राजस्थान हाई कोर्ट ने शुक्रवार को सरकार को सख्त निर्देश देते हुए कहा कि 15 अप्रैल 2026 तक हर हाल में चुनाव करा दें। अदालत का रुख ऐसा था, मानो महीनों से धूल खाती फाइलों पर एक झटके में मुहर लगा दी गई हो।
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निर्णय कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एस.पी. शर्मा की खंडपीठ ने सुनाया। यह फैसला उन याचिकाओं के बाद आया, जिनमें पूर्व विधायक संयम लोढ़ा, गिरिराज सिंह देवंदा और कई अन्य ने आरोप लगाया था कि सरकार ने संविधान के खिलाफ जाकर पंचायत और निकाय चुनाव मनमर्जी से रोक दिए।
अदालत ने सरकार को साफ चेताया—
“दोनों चुनाव साथ कराएं… और 31 दिसंबर 2025 तक परिसीमन पूरा कर लें।”
याचिकाकर्ताओं का आरोप: ‘चुनाव रोके गए, कानून को मोड़ा गया’
अधिवक्ता प्रेमचंद देवंदा ने कोर्ट में तर्क रखा कि 16 जनवरी 2025 की अधिसूचना ने सीधे-सीधे अनुच्छेद 243E, 243K और राजस्थान पंचायत राज अधिनियम 1994 की धारा 17 को चोट पहुंचाई है।
उनका कहना था—पंचायत का कार्यकाल खत्म होते ही चुनाव होना जरूरी है। एक दिन भी देरी गैरकानूनी है। जिन सरपंचों का कार्यकाल समाप्त हो गया, वे अब जनप्रतिनिधि नहीं—उन्हें प्रशासक बनाना भी गलत है।
सरकार की दलील: ‘वन स्टेट, वन इलेक्शन’ और अधूरा परिसीमन
सरकार ने जवाब में कहा कि वह ‘वन स्टेट, वन इलेक्शन’ की अवधारणा पर काम कर रही है। इसके लिए उच्चस्तरीय समिति बनाने की तैयारी है, ताकि समय, धन और संसाधनों की बचत हो सके।
सरकार ने यह भी माना कि पिछले कार्यकाल में नए जिलों के गठन और फिर कुछ जिलों के समाप्त होने के कारण परिसीमन की प्रक्रिया अधूरी रह गई, इसलिए चुनाव को आगे बढ़ाना पड़ा। साथ ही सरकार ने यह भी कहा कि धारा 95 के तहत प्रशासक नियुक्त किए गए हैं, और कानून में यह स्पष्ट निषेध नहीं है कि किसे प्रशासक बनाया जा सकता है या नहीं।
राज्य में चुनावी निर्वात: हजारों संस्थाएं ‘बिना जनादेश’ चल रहीं
राजस्थान की 6,759 पंचायतों और 55 नगरपालिकाओं का कार्यकाल पहले ही समाप्त हो चुका है। कई इलाकों में स्थानीय निकाय महीनों से प्रशासनिक मोड में चल रहे हैं।
हाई कोर्ट के आदेश के बाद अब चुनावी मशीनरी को तुरंत एक्टिव होना पड़ेगा।
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