उदयपुर
कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके) का देश और किसानों के विकास में योगदान तो अतुलनीय है, लेकिन मौजूदा समय में इन केन्द्रों को खेती-किसानी की वास्तविक चुनौतियों को सूचीबद्ध कर उनके समाधान की दिशा में ठोस पहल करनी होगी। यही नहीं, देशभर की प्रयोगशालाएं, कृषि विश्वविद्यालय और शोधार्थी भी किसानों की समस्याओं को साझा करें, ताकि उनके सटीक अध्ययन और समाधान से किसानों को वास्तविक राहत मिल सके।
यह बात राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) के निदेशक डॉ. धीर सिंह ने बुधवार को कही। वे प्रसार शिक्षा निदेशालय के प्रज्ञा सभागार में आयोजित राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के केवीके की तीन दिवसीय वार्षिक क्षेत्रीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे।
डॉ. सिंह ने कहा कि लैब में विकसित तकनीक को किसानों तक पहुंचाने में केवीके की भूमिका निर्णायक है। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि वे कृषि में युवाओं के लिए आत्मविश्वास जगाने वाले मॉडल तैयार करें, ताकि अधिकाधिक युवा खेती से जुड़ने के लिए प्रेरित हों।
उन्होंने बताया कि देश का दुग्ध उत्पादन 17 मिलियन टन से बढ़कर 240 मिलियन टन तक पहुंच चुका है, पर युवाओं को आकर्षित करने वाली तकनीक और विपणन प्रणाली अभी भी सीमित है। एनडीआरआई ने अब तक 144 कृषि एवं डेयरी तकनीकें विकसित की हैं, जिन्हें किसानों और पशुपालकों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी केवीके को उठानी होगी।
किसान ही हमारा हितधारक- कुलगुरु डॉ. प्रताप सिंह
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ. प्रताप सिंह ने कहा कि “किसान ही हमारा वास्तविक हितधारक है।” उन्होंने कहा कि कार्यशाला के दौरान केवल समीक्षा नहीं, बल्कि प्रशासनिक, वित्तीय और सुधारात्मक चुनौतियों पर भी चर्चा जरूरी है।
उन्होंने सुझाव दिया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के साथ हुए MOU की फिर से समीक्षा की जानी चाहिए, ताकि नीतियां जमीन पर आसानी से लागू हो सकें। उन्होंने कहा कि अब जरूरत ‘विपणन क्रांति’ की है, क्योंकि किसान आज सोशल मीडिया, यूट्यूब और स्वयंसेवी संगठनों से भी सीख रहा है।
विकसित भारत 2047 में केवीके की अहम भूमिका- डॉ. एम.एम. अधिकारी
विशिष्ट अतिथि बिधानचंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल के पूर्व कुलपति डॉ. एम.एम. अधिकारी ने कहा कि प्रधानमंत्री के ‘विकसित भारत – 2047’ के विज़न को साकार करने में केवीके की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने राज्यपाल के ‘स्मार्ट विलेज इनिशिएटिव’ की तर्ज पर हर केवीके से एक गांव गोद लेने और वहां प्रमुख तकनीकों का प्रयोग करने की अपील की।
जोन-2 केवीके की उपलब्धियां और विशिष्टताएं
आईसीएआर-अटारी जोन-2 (जोधपुर) के निदेशक डॉ. जे.पी. मिश्रा ने बताया कि राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के 67 केवीके इस जोन के अंतर्गत कार्यरत हैं, जिन्होंने पिछले एक वर्ष में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है।
देश के कुल 11 जोनों में से जोन-2 विशिष्ट है — ईसबगोल, जीरा और डेयरी उत्पादन में यह जोन शीर्ष पर है।
कृषि साहित्य का विमोचन
उद्घाटन सत्र में अतिथियों द्वारा कई कृषि पुस्तकों और तकनीकी गाइडों का विमोचन किया गया —
“रबी फसलों एवं बागवानी की उन्नत तकनीकियां” – डॉ. सी.एम. बलाई व टीम
“प्राकृतिक खेती” – डॉ. सरोज चौधरी व टीम
“राजस्थान के थार मरूस्थलीय क्षेत्र में वैज्ञानिक बकरी एवं भेड़ पालन” – डॉ. रामनिवास व टीम
“रबी फसलों की वैज्ञानिक खेती” – डॉ. बंशीधर व टीम
“फ्रूट ककड़ी की उन्नत खेती” – डॉ. सुरेशचंद कांटवा
“सौंफ की उन्नत खेती” – डॉ. गोपीचंद सिंह
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