भाजपा में भी शुरू हुई गुत्थम-गुत्था, सतीश पूनिया ने दी वसुंधरा समर्थकों को हिदायत; बयानबाजी से बाज आएं

योगेन्द्र गुप्ता 

जयपुर। कांग्रेस में शुरू हुई गुटबाजी के बाद अब भाजपा में भी गुत्थम-गुत्था शुरू हो गई है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा ज्यादा तरजीह न मिलने से निराश राजे समर्थकों ने दबाव की राजनीति खेलना शुरू कर दिया है। एक बार फिर वसुंधरा राजे समर्थक विधायकों ने राजे को 36 कौम की नेता बताते हुए कहा है कि उनका कोई विकल्प नहीं है। इस पर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां ने राजे समर्थकों को हिदायत दी है कि वे ऐसे बयान देने से बचें। ऐसे बयान ना ही पार्टी और ना ही बयान देने वालों के हित में है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय नेतृत्व जिसे भी नेता तय करेगा, हम सब उसके पीछे चलेंगे। यह समय तो कांग्रेस से लड़कर जीतने का है। इस बीच सूत्रों ने बताया कि केन्द्रीय नेतृत्व ऐसे बयानों से खुश नहीं है और इनको गंभीरता से लिया है। केन्द्रीय नेतृत्व इसलिए भी नाराज बताया गया कि पूर्व  मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी अपने समर्थकों को ऐसी बयानबाजी करने से रोकने की कोई कोशिश नहीं की।

पूनिया ने भाजपा मुख्यालय पर पत्रकार वार्ता में कहा कि व्यक्तिगत तौर पर इस तरह के बयान पार्टी की मर्यादा के बाहर है। जो नेता ये बयान दे रहे हैं, वो पार्टी के संज्ञान में हैं। इन सभी को समय आने पर जवाब भी मिलेगा। इस तरह के बयानों को लेकर केंद्रीय नेतृत्व को रिपोर्ट भेजने के सवाल पर पूनिया ने कहा पार्टी में जो भी कुछ हो रहा है सबको दिख रहा है और सब के संज्ञान में है।

आपको बता दें कि पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल ने एक बयान में कहा था कि राजस्थान में वसुंधरा राजे जितना बड़ा कद किसी नेता का नहीं है। इसके बाद भाजपा विधायक प्रतापसिंह सिंघवी ने भी कहा कि राजे का कोई विकल्प नहीं है। राजे के समर्थक अब खुलकर मांग कर रहे हैं कि राजे को राजस्थान में जिम्मेदारी दी जानी चाहिए
सूत्रों ने बताया कि केन्द्रीय नेतृत्व ऐसे बयानों से खुश नहीं है और इनको गंभीरता से लिया है। केन्द्रीय नेतृत्व इसलिए भी नाराज बताया गया कि पूर्व  मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी अपने समर्थकों को ऐसी बयानबाजी करने से रोकने की कोई कोशिश नहीं की। पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व ने इसे काफी गंभीरता से लिया है। केन्द्रीय नेतृत्व ने राजे को अपनी नाराजगी का भी संकेत दे दिया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने भी केंद्र से इशारा मिलने के बाद पार्टी के प्रदेश मुख्यालय पर पत्रकारों के  पूछे सवालों पर साफ़ संकेत दे दिया कि  व्यक्तिगत तौर पर इस तरह के बयान पार्टी की मर्यादा के बाहर है। जो नेता ये बयान दे रहे हैं, वो पार्टी के संज्ञान में हैं। इन सभी को समय आने पर जवाब भी मिलेगा।
पर इस बारे में साफ़ नहीं बताया कि वे राजे समर्थकों की इस बयानबाजी को लेकर कोई रिपोर्ट केन्द्रीय नेतृत्व को भेज रहे हैं या नहीं। पूनिया ने सिर्फ इतना कहा कि जो भी कुछ हो रहा है सबको दिख रहा है और सब के संज्ञान में है।

बीजेपी में लीडर क्राइसिस नहीं
पूनिया ने कहा कि कांग्रेस कहती है कि भाजपा में 10 नेता मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं। अगर 20 दावेदार भी हों  तो भी पार्टी को कोई नुकसान नहीं है। एक समय था जब बीजेपी में लीडर क्राइसिस की बातें होती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। भाजपा वैचारिक, व्यवहारिक और संगठनात्मक रूप से मजबूत है। ऐसे में कांग्रेस नेताओं के इस तरह के बयानों से कोई चिंता वाली बात नहीं है।

हाशिये पर हैं राजे समर्थक
सूत्रों के अनुसार केन्द्रीय नेतृत्व मानता है कि वसुंधरा राजे के रहते राजस्थान में कोई नई लीडरशिप डवलप होना मुश्किल है। इसीलिए उसने गत चुनाव के बाद से ही वसुंधरा राजे को कई बार केंद्र की राजनीति में लाने की कोशिश की। उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बनाया। पर राजे केंद्र में जाने को राजी नहीं हुईं। अब जैसे-जैसे राजस्थान में विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं और गहलोत सरकार का जनता में ग्राफ गिरता जा रहा है, वैसे-वैसे वसुंधरा राजे समर्थक सक्रिय हो गए हैं और केंद्र पर इसका दबाव बनाने की बराबर कोशिश की जा रही है कि कैसे भी  वसुंधरा राजे को राजस्थान की कमान सौंपी जाए। लेकिन सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि केन्द्रीय नेतृत्व का इस बार कतई मूड नहीं है कि इस बार फिर से वसुंधरा राजे को राजस्थान की कमान सौंपी जाए। बताया जाता है कि यही सब स्थितियां भांप कर राजे समर्थकों की ओर से प्रेशर पॉलिटिक्स की ट्रिक अपनाई जा रही है।

इसलिए परवाह नहीं कर रहा केन्द्रीय नेतृत्व
सूत्रों के अनुसार केन्द्रीय नेतृत्व वसुंधरा राजे की प्रेशर पॉलिटिक्स की इसलिए अब ज्यादा परवाह नहीं कर रहा क्योंकि राजस्थान में लीडरशिप डवलप हो चुकी है। इनमें सतीश पूनिया के साथ-साथ गजेन्द्र सिंह शेखावत, राजेंद्र सिंह राठौर, राज्यवर्धन सिंह राठौर के नाम प्रमुख हैं। दीया कुमारी का नाम भी लिया जा रहा है। यूं तो राज्यसभा सदस्य भूपेन्द्र यादव और सुनील बंसल केंद्र की राजनीति कर रहे हैं, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर केन्द्रीय नेतृत्व इनमें से भी किसी को राजस्थान की कमान सौंप सकता है। मोदी- अमित शाह हरियाणा और महाराष्ट्र में नया नेतृत्व लाकर सरप्राइज दे चुके हैं। राजस्थान में भी ऐसा ही कुछ  सरप्राइज आ सकता है क्योंकि केन्द्रीय नेतृत्व अभी तो वसुंधरा राजे की दबाव की राजनीति के आगे झुकने को तैयार नहीं है।




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