अहमदाबाद
RBI ने एक सरकारी बैंक को दूसरी में मर्ज कर दिया तो कई चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म्स (CA Firms) रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट पहुंच गईं। दरअसल RBI ने बैंकों को दूसरी बैंक में मर्ज करते समय ऐसी तकनीकी खामी छोड़ दी जिससे कई चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म्स (CA Firms) को नुकसान हो रहा था। अब इन CA Firms ने गुजरात हाईकोर्ट में मामला दर्ज कराकर उनके हितों की रक्षा करने की गुहार लगाई है। कन्वीनर ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट एसोसिएशन (CAA) किरणसिंह छावड़ा ने यह याचिका दायर की है। चार्टर्ड अकाउंटेंट एसोसिएशन (CAA) ने इससे पहले भी एक ऐसी ही मामले में कोलकाता हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
ताजा मामला इंडियन बैंक में इलाहाबाद बैंक को मर्ज करने का है। कई चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म्स (CA Firms) इलाहाबाद बैंक की ब्रांचों के लिए ऑडिट का काम करती थीं। लेकिन रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इंडियन बैंक में इलाहाबाद बैंक को मर्ज करते समय इन चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म्स को ऑडिट के काम से हटा दिया। अब इन चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म्स का कहना है कि इन बैंकों को मर्ज कर दिया तो इसमें हमारा क्या कसूर? लिहाजा उनकी पुरानी स्थिति को बहाल किया जाए। आपको बता दें कि वर्तमान रेग्युलेशन के मुताबिक ज्यादातर पब्लिक सेक्टर बैंक अपने ब्रांच ऑडिट के लिए स्थानीय स्तर पर ही सीए फर्म्स के साथ अनुबंध करते हैं। मेन ऑडिटर भी इन ऑडिट रिपोर्ट पर पूरा भरोसा करते हैं। ऑडिट कराने का यह तरीका एसबीआई के साथ-साथ इलाहाबाद बैंक, इंडियन बैंक सहित प्राय: सभी बैंकों में अपनाया जाता है। लेकिन रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने सरकारी बैंकों को एक दूसरे में मर्ज करते समय जो नीति तैयार की उस दौरान ऐसी बैंकों में ऑडिट पुरानी CA Firms करेगी या नई, इसको अनदेखा कर दिया गया। अब पेंच यह फंस गया है कि इंडियन बैंक में पहले से ही जो CA Firms ऑडिट कर रही थीं, अब उस बैंक में इलाहाबाद बैंक को मर्ज करने के बाद भी वही CA Firms ऑडिट कर रही हैं। अब समस्या यह आ गई कि जिस इलाहाबाद बैंक का मर्ज किया गया तो उसमें पहले से ऑडिट कर रहीं CA Firms क्या करें? लिहाजा RBI ने उन CA Firms को ही हटा दिया। अब इन CA Firms ने हाई कोर्ट में याचिका लगाकर कहा है कि इसमें उनका क्या कसूर? उन्होंने सवाल खड़ा किया कि करार खत्म होने से पहले RBI उनको कैसे हटा सकती है? इसी बात से ये ऑडिट फर्म्स खफा हैं।
चार सालों के लिए होता है करार
कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि वर्तमान रेग्युलेशन के तहत बैंक किसी भी ऑडिटर या ऑडिट फर्म की नियुक्ति चार सालों के लिए करता है। लेकिन मर्जर के बाद रिजर्व बैंक ने इलाहाबाद बैंक के कई ऑडिटर का कॉन्ट्रैक्ट खत्म कर दिया। बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट के तहत हर बैंक को अपने फाइनेंशियल स्टेटमेंट को ऑडिट कराने की जरूरत होती है। यह काम कोई क्वॉलीफाइड ऑडिटर ही कर सकता है। इन ऑडिटर्स की नियुक्ति और निष्कासन, दोनों रिजर्व बैंक से मंजूरी मिलने के बाद ही संभव है। लीगल एक्सपर्ट्स का कहना है कि रिजर्व बैंक ऑडिट फर्म्स को हर साल अप्वॉइंट, री-अप्वॉइंट और कंफर्मेशन ऑफ अप्वॉइंटमेंट करता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि ये ऑडिटर्स एलिजिबिलिटी और दूसरी शर्तों को पूरा कर रहे हैं या नहीं। यदि ये ऑडिटर्स सभी शर्तों को पूरा कर रहे हैं तो उनको करार से पहले नहीं हटाया जा सकता।
मर्जर की परिस्थिति को लेकर नियम साफ नहीं
जानकारों का ये भी कहना है कि नियम साफ-साफ हैं, इसके बावजूद मर्जर जैसी परिस्थिति को लेकर नियमों की पारदर्शिता नहीं है। हालांकि कोलकाता हाईकोर्ट ने अपने फैसले में आरबीआई से कहा था कि वह नए ऑडिटर की नियुक्ति नहीं करे। कानून के जानकारों के मुताबिक, इस मामले को हाईकोर्ट को गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि यह छोटे सीए फर्म्स से जुड़ा मामला है।