धन की हेराफेरी में फंस गए निवेशकों के 14 हजार करोड़

योगेन्द्र गुप्ता 

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पहले आकर्षक दरों पर निवेश करवाया। हर साल डिवीडेण्ड भी दिया। ताकि लोग और अधिक निवेश को लालायित हों और जब हजारों करोड़ की राशि खजाने में आ गई तो फिर इसके बाद शुरू हुआ ‘इस हाथ लो और उस हाथ बाँटो’ का सिलसिला। परिवार, रिश्तेदारों और मित्रों के नाम से निवेशकों की गाढ़ी कमाई की ऐसी बंदरबांट हुई कि संस्थान की वित्तीय व्यवस्था डगमगा गई। फिर खलबली ऐसी मची कि निवेशक भी बड़ी तादाद में अपनी जमा पूंजी को निकालने के लिए कतार में खड़े हो गए। नतीजतन खजाना खाली हो गया और संस्थान पर ताले लटक गए। करीब 21लाख निवेशकों की गाढ़ी कमाई के करीब 14 हजार करोड़ रुपए अटक गए। अब वो अपनी राशि पाने के लिए भटक रहे हैं। व्यवस्था की कछुआ चाल से उनकी सांसें अटकी हुई हैं।
वित्तीय लेनदेन की ऐसी हेराफेरी आदर्श क्रेडिट सोसायटी लि.में हुई। जांच में सब उजागर हो चुका है। जांच रिपोर्ट खंगाली तो इस घोटाले की परत-दर-परत खुलती चली गईं। देखिए सोसायटी के संस्थापकों ने अपने निजी फायदे के लिए निवेशकों को कैसे निचोड़ कर रख दिया। 

बिना गारण्टी बांट दिए कर्ज
ACCSL ( आदर्श क्रेडिट सोसाइटी ) के संस्थापक मुकेश मोदी और उनके रिश्तेदारों ने विभिन्न स्थानों पर अपने पंजीकृत पते के साथ 125 से अधिक निजी कंपनियों को पंजीकृत कराया। इनमें से अधिकांश के दिए पते पर कोई व्यावसायिक गतिविधियां नहीं मिलीं। इन कंपनियों को बिना गारण्टी की चिंता किए 9238 करोड़ (लगभग पूरी जमा राशि) इन कंपनियों को कर्ज के रूप में बांट दी गई। यही नहीं कई सालों तक इनमें से अधिकांश कंपनियों से न तो मूल राशि और न ही ब्याज वापस लिया गया। मिलीभगत का आलम ये था कि ACCSL सोसाइटी द्वारा बकाया राशि की वसूली के लिए कोई कार्रवाई भी नहीं की गई। इस तरह सोसायटी के संस्थापक मुकेश मोदी और उनके परिवार के सदस्यों ने अपनी इन सभी शेल कंपनियों के लिए कई हजार करोड़ क्रेडिट सोसाइटी के फंड से निकाल लिए। ACCSL द्वारा जमा की गई कुल जमा राशि  9474 करोड़ है। 

ऋण और अग्रिम (बकाया ब्याज सहित) 12,433 करोड़ रुपए हैं। उक्त ऋणों में से 180 कंपनियों और व्यक्तियों को 12,406 करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं, जिनमें से 122 कंपनियां पूरी तरह से मुकेश मोदी परिवार और उनके रिश्तेदारों द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित थीं। ACCSL ने इस राशि को नहीं दिखाया है। बैड लोन या नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स के रूप में 9238 करोड़ रुपए है लेकिन इसे सालों बाद बकाया मूलधन और ब्याज के रूप में दिखाया जा रहा है। इतने बड़े ऋण के खिलाफ संपत्ति की सुरक्षा या बंधक लगभग  612 करोड़ है। इस प्रकार सोसायटी के संस्थापकों ने आम जमाकर्ताओं के हितों को जोखिम में डाल दिया गया है। आदर्श बिल्डस्टेट लिमिटेड द्वारा 490 करोड़ का लाभ उठाया गया।

कमीशन के नाम पर बांट दिए 650 करोड़
सोसायटी ने  एक एकल फर्म मेसर्स महावीर कंसल्टेंसी को सलाह सेवाओं के कमीशन के नाम पर वित्तीय वर्ष 2015-16 में 59.36 करोड़, 2016-17 में 194.69 करोड़ और 2017-18 में  406.68 करोड़  कुल क़रीब साढ़े छह सौ करोड़ बांट दिए। जिसमें मुकेश मोदी की पत्नी और दामाद भागीदार हैं। इसी तरह का कमीशन वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान 760 करोड़ रुपए तथाकथित सलाहकारों को भुगतान किए गए हैं, जिनमें से प्रमुख हिस्सा फर्जी होने की संभावना है। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि मुकेश मोदी के परिवार के सदस्यों को सलाहकार सेवाओं के लिए किए गए भुगतान की आड़ में ACCSL के धन को छीना गया।

सोने चांदी का भण्डार 25.62 करोड़, मौके पर मिला सिर्फ 8.18 करोड़ का
आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी ने सोने, चांदी और ट्रेडिंग सोने के स्टॉक में निवेश के रूप में 25.62 करोड़ दिखा रखे थे।  जबकि भौतिक सत्यापन में  8.18 करोड़ का सोना-चांदी मिला। ऐसी आशंका है कि ACCSL के प्रबंधन ने सोने और चांदी को रुपए की कमी के कारण ठिकाने लगा दिया हो।

सभी निदेशक डमी
ACCSL सोसाइटी के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष सहित बोर्ड के सभी निदेशक डमी हैं और मुकेश मोदी और राहुल मोदी पूरे सोसाइटी को नियंत्रित करते हैं। यही नहीं मुकेश मोदी के परिवार के सभी सदस्य ACCSL सोसाइटी में उच्च पद पर हैं और उनका वेतन और प्रोत्साहन साधारण कर्मचारियों के मुकाबले असाधारण रूप से अधिक है। ऋण स्वीकृति की पूरी प्रक्रिया पूरी तरह से इन्हीं से नियंत्रित है। 

राजस्थान हाईकोर्ट ने जारी किया नोटिस, छह सप्ताह में मांगा जवाब 
इस बीच 18 जनवरी को सुनवाई करते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर के न्यायाधीश मनोज कुमार  गर्ग द्वारा बाबू लाल जैन की ओर से दायर एक रिट याचिका पर इस मामले में भारत सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक व आदर्श सोसायटी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

याचिका के तहत अधिवक्ता अनिल व्यास ने न्यायालय के समक्ष पक्ष रखा और बताया कि याचिकाकर्ता की फिक्स डिपॉजिट सोसायटी में जमा थी और उसकी राशि को लौटाया नहीं जा रहा है और सोसायटी के कर्ताधर्ता भी जेल में है तो इस राशि को लौटाने की जिम्मेवारी भारतीय रिजर्व बैंक की है। क्योंकि  उच्च न्यायालय के आदेश के पूर्व में दिए गए निर्णय के तहत कोई भी सोसायटी तभी लेन-देन का कार्य कर सकती थी जब भारतीय रिजर्व बैंक से लाइसेंस प्राप्त करे। इसलिए आदर्श सोसायटी सीधे तौर पर भारतीय रिजर्व बैंक के अधीन मानी जाएगी और उसके दिवालीया या कार्य नहीं करने की स्थिति में भारतीय रिजर्व बैंक की ही संपूर्ण ज़िम्मेदारी होगी और याचिका कर्ता को उसकी रकम का भुगतान भारतीय रिजर्व बैंक को करना होगा । उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अनिल व्यास को सनुने के पश्चात सभी पक्षकारों को कारण बताओ नाटिस जारी कर छह सप्ताह में जबाव प्रस्तुत करने के आदेश प्रदान किए हैं।  याचिका कर्ता द्वारा स्थगन प्रार्थना पत्र पर भी न्यायालय ने संज्ञान लेकर नोटिस जारी किए हैं।





 

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