जीवन की डोर को थामे रखना…

कविता 

डॉ. विनीता  राठौड़


वक़्त का दरिया बह जाएगा
वक़्त यह भी गुज़र जाएगा

घर से बाहर कदम न रखना
कुछ दिन घर में कैद ही रहना

सैर-सपाटा अभी न करना
थोड़ा अभी तुम ठहरना

तन्हा स्वयं को होने न देना
पराशक्ति में ध्यान लगाना

हौंसला अपना कभी न खोना
संयम को अभी बनाए रखना

सांसों को यूँ ही न थमने देना
प्राणायाम निरंतर करते रहना 

 

जिजीविषा को कम न होने देना
जीवन की डोर को थामे रखना

माना वक़्त बुरा है आया
इसको फिर से जाना ही होगा

पसरा है सन्नाटा चहुँओर 
शीघ्र शहर गुलज़ार भी होगा

हंसी-ठहाका फिर से होगा
मित्रों से मिलना भी होगा

संकट विमुक्ति के समग्र प्रयासों द्वारा
अदृश्य मायावी शत्रु शीघ्र परास्त होगा

घोर अँधेरी रात के बाद 
फिर सुनहरा सवेरा होगा

वक़्त का पहिया फिर से घूमेगा
वक़्त यह भी गुज़र जाएगा।

( लेखिका राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा में प्राणीशास्त्र की सह आचार्य हैं)

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