आर्टिफिशल इंटेलिजेंस और मानव का अस्तित्व

Artificial Intelligence

डॉ. अतुल गर्ग 


आज ‘आर्टिफिशल इंटेलिजेंस’ (AI) के दौर में ऐसा प्रतीत होता है जैसे हमें चुनौती मिल रही है। ‘कृत्रिम बुद्धिमता’ (AI) की चिंताएं स्थापित और जगजाहिर है। बहुत बड़े पैमाने पर डाटा कलेक्ट कर उसका उपयोग रोबोट आदि के माध्यम से करना सही हो सकता है पर सटीक नहीं, इसी कारण चिंताएं है। ‘आर्टिफिशल इंटेलिजेंस’ के विकास में लगातार दो तरह की बातें सामने आ रही हैं। एक तो यह कि मानव सृजित उपकरणों में यदि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का समावेश किया जाए तो मानव जीवन और अधिक सुगम व सरल हो जाएगा तथा आज मानव के सामने आ रही विभिन्न समस्याओं का निराकरण ‘एआइ’  युक्त उपकरण बड़ी आसानी और तीव्रता से कर देंगे। वहीं दूसरी ओर कहा जा रहा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से उपकरण अति संवेदनशील बन जाएंगे और जरा सी असावधानी से मानव जीवन के लिए अति घातक सिद्ध होंगे। यहां तक कहा जा रहा है कि यह ‘आर्टिफिशल इंटेलिजेंस’  उपकरण स्वयं पूर्ण विनाश करने में सक्षम होंगे।

लेख में ‘एआइ’ के कारण तथ्यात्मक मूलभूत बदलाव, मनुष्य होने की प्रधानता को चुनौती कहा गया है जिसके कारण संभवत मनुष्य द्वारा अविष्कृत ‘एआइ’ उसके अस्तित्व को नकार सकती है। ऐसा होना कतई संभव नहीं है। इन बातों का सार हम ‘प्रकृति के संचालन’ के तरीकों से आसानी से समझ सकते हैं। व्यापक स्वरूप से इसे समझने का प्रयास करते हैं।

सबसे पहले हम अपने आदि काल को देखते हैं, जब मानव जगत विकसित नहीं था। पृथ्वी पर केवल निर्जीव व सजीव जगत था। सजीव जगत के लिए भूख,  भय व काम प्रमुख था। सब प्राणी अपने-अपने तरीके से जीवन जी रहे थे। पूरे जीव जगत में ‘सृष्टि रचियता’  ने केवल मानव में इंटेलिजेंस,  जिसे हम नेचुरल इंटेलिजेंस  (NI) कह सकते हैं, का प्रयोग किया। इसके कई अच्छे व बुरे परिणाम सामने आए। अच्छे परिणामों में एक तो यह कि मानव ने ‘सृष्टि रचियता’  द्वारा रचित दुनियां में न केवल अद्भुत व अनोखे अविष्कार किए  बल्कि उसका रूप भी बदला। जैसे आकृति कि दुनियां में देखें तो ‘सृष्टि रचियता’ ने गोला (सभी ग्रह, उपग्रह, फल आदि), बेलन – (पेड़ के तने, जीवों के शरीर के भाग आदि), शंकु – (पहाड़, दीपक की लौ आदि), दीर्घवृत्ज – (अंडे, मछली, दालें अदि) बनाये। मानव को ये आकृतियाँ तो बहुत अच्छी लगी लेकिन इनसे आगे निकल कर उसने  घनाभ (चोकोर वस्तुएं) बना लिया जो आज भी पूरे यूनिवर्स में कहीं भी नहीं है। आप अपने कमरे में रखी वस्तुओं पर गौर करें – कमरा, अलमारी, टीवी, फ्रिज, किताब, तस्वीर, स्विच बोर्ड आदि सभी घनाभ हैं। इसी प्रकार यदि गति कि बात करें तो मानव निर्मित उपकरणों की जल, थल व आकाश में गति, ‘सृष्टि रचियता’   द्वारा रचित जीवों से कई गुणा अधिक है जैसे- याच, बुलट ट्रेन, फाइटर प्लेन आदि की गति शार्क, चीता व बाज से कहीं ज्यादा है।

दूसरी तरफ बुरे परिणामों में, जैसे – जैसे मानव विकसित होता गया तथा उसने अपने संसार का विकास कर लिया। मानव ने अपनी सुरक्षा, भोजन व आराम के लिए विभिन्न उपकरणों का निर्माण किया व अपने जीवन को सुगम बनाया। इससे उसकी महत्वाकांक्षाएं, लालसा व लोलुपता तीक्ष्ण होती गई जिसे पूरा करने के लिए उसने जीव जगत का विनाश करना प्रारंभ कर दिया। इससे पूरे जीव-जगत में हाहाकार मच गया। मानव ने अपने विस्तार-प्रसार के लिए जीव जगत के साथ – साथ  पर्यावरण में भी गहरी सेंध लगा दी। अनेक प्रजातियां विलुप्त हो गई व कई  होने की कगार पर खड़ी है। धरती का दोहन यथा पेड़-पौधे नदियां-तालाब, खनिज खनन आदि कर प्रकृति को तहस-नहस कर दिया व लगातार करता जा रहा है। इससे एक बात तो स्पष्ट है कि नेचुरल इंटेलिजेंस ने धरती के निर्जीव व सजीव जगत में हाहाकार मचा दिया, उसको समूल नष्ट कर महा विनाश की ओर धकेल दिया। यह सब ‘सृष्टि रचियता’ की पूर्ण जानकारी में मानव द्वारा किए गए कारनामे हैं। अत: मानव ‘सृष्टि रचियता’  द्वारा रचित दुनियां में तो प्रलय कर सकता है पर ‘सृष्टि रचियता’   को चुनौती देना सोचा भी नहीं जा सकता।

उपरोक्त से हम ‘एआइ’ से होने वाले परिणामों का अनुमान लगा सकते हैं। अति विकसित उपकरणों जैसे रोबोट, कंप्यूटर, मोबाइल आदि की दुनिया का मानव सृजनहार (क्रिएटर) है। यदि उपकरणों के अभी तक के क्रिया-कलापों पर नजर डालें तो इस समय रोबोट, मोबाइल आदि मानव द्वारा रचित सर्वोतकृष्ट रचना है। रोबोट और मोबाइल ने अपने उपकरण जगत में विनाश प्रारंभ कर दिया है। इन्होंने  विभिन्न उपकरणों की प्रजाति यथा कैमरा, पुराने फोन, रेडियो, टेप-रिकॉर्डर, टॉर्च आदि अनेक उपकरणों का संसार उजाड़ दिया है, या कहें कि समूल नष्ट कर दिया है। आज मानव इसमें  ‘आर्टिफिशल इंटेलिजेंस’ डालना चाह रहा है। यदि मानव ने आगे बढ़ते हुए इन उपकरणों में  इंटेलिजेंस डाल दी तो उपकरण जगत में दुष्परिणाम स्वरुप कई और प्रजातियों का सर्वनाश तो निश्चित है लेकिन सृजनकर्ता मानव के लिए चुनौती संभव नहीं। हो सकता है वो कुछ नया सृजित करे पर वह सृजनकर्ता मानव के लिए लाभदायक ही होगा। अभी तो सृजनकर्ता मानव के लिए यह रोबोट, मोबाइल आदि अत्यंत सुविधाजनक व लाभदायक है। सृजनकर्ता मानव आज मोबाइल से असीम स्नेह करता है। उसे हर समय हर क्षण अपने पास पॉकेट में रखता है। ‘एआइ’ के बाद शायद ये प्रगाढ़ता और मजबूत हो जाए।

अभी तो मानव ने मोबाइल व अति विकसित रोबोट को उपकरण जगत में  प्रलय की अनुमति दी हुई है। आज मानव चाहे तो वह उपकरण जगत की इस प्रलय पर तुरंत पाबन्दी लगा सकता है। लेकिन यदि मानव अपनी सुविधा विस्तार हेतु अपने उपकरणों में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का समावेश और करता है तो यह प्रलय पूरे उपकरण जगत के लिए और तीव्र घातक होगी, परन्तु सृजनकर्ता (मानव) के लिए और अधिक सुविधाजनक। जिस प्रकार मानव अपने ‘सृष्टि रचियता’  द्वारा रचित दुनियां को उजाड़ तो सकता है पर ‘सृष्टि रचियता’ का कुछ नहीं बिगड़ सकता ठीक उसी प्रकार मानव द्वारा रचित सर्वश्रेष्ट उपकरण में ‘एआइ’, उपकरण जगत में तो प्रलय मचा सकती है पर सृजनकर्ता मानव के केवल लाभ के लिए। है ना…

(लेखक राजकीय बांगड़ महाविद्यालय, डीडवाना (नागौर), राजस्थान में गणित विभाग के सह-आचार्य हैं)

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