तथ्य
अश्वनी पांडे एडवोकेट, कानपुर
ग्रैंड ट्रंक रोड (Grand Trunk Road) को भारत ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे पुरानी, लंबी एवं प्रमुख सड़क के रूप में जाना जाता है। यह सड़क बांग्लादेश के चटगांव से शुरू होकर भारत, पाकिस्तान से होते हुए अफगानिस्तान के काबुल में जाकर समाप्त होती है। वर्तमान के इन 4 देशों को मिलाकर इसकी कुल लंबाई 3670 कि.मी. है।
लेकिन,आपको पता है इसे किसने बनवाया था? हमें अभी तक इतिहास की किताब में यही पढ़ाया जाता रहा है कि ग्रैंड ट्रैंक रोड को शेरशाह सूरी ने बनवाया था। लेकिन यह तथ्य सही नहीं है। दरअसल सच यह है कि भारत की इस सबसे लंबी एवं प्रसिद्ध सड़क को शेरशाह ने नहीं बल्कि शेरशाह से 1850 साल पहले चंद्रगुप्त मौर्य ने बनवाया था। पर हमारे भारतीय इतिहासकारों ने शेरशाह के महिमामंडन हेतु उसे GT ROAD का निर्माता घोषित कर दिया।
इतिहासकार भारतीय इतिहास और भूगोल की खोज को हर तरह से खंगाल रहे हैं और इसके परिणामस्वरूप कई ऐसे तथ्य सामने आए हैं जिसने पूर्व में लिखे गए कई तथ्यों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। ऐसा ही ग्रैंड ट्रंक रोड के इतिहास के साथ भी है। ग्रैंड ट्रंक रोड का इतिहास बहुत पुराना है। प्राचीन काल में इसे उत्तरापथ कहा जाता था। यह गंगा के किनारे बसे नगरों को, पंजाब से जोड़ते हुए, ख़ैबर दर्रा पार करती हुई अफ़ग़ानिस्तान के केंद्र तक जाती थी। मौर्यकाल में बौद्ध धर्म का प्रसार इसी उत्तरापथ के माध्यम से गंधार तक हुआ।
ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि GT ROAD शेरशाह (1540-1545) से 1850 साल पहले 329 ईसा पूर्व से ही भारत में मौजूद है। चंद्रगुप्त मौर्य के समय यह सड़क ‘उत्तरा पथ’ के नाम से जाना जाता था। दरअसल हमारी अधिकांश प्राचीन धरोहरों का नाम बदल कर प्रचारित करने का कृत्य करते हुए झूठा इतिहास गढ़ने का ही काम किया गया है और जहां वे ऐसा करने में असफल हुए उन मंदिरों और धरोहरों को तोड़कर उनपर अपना घटिया निर्माण थोपने का काम किया है। बात चाहे मथुरा की हो या काशी विश्वनाथ की या फिर अढ़ाई दिन का झोपड़ा हो, ये सभी ऐसे ही उदाहरण हैं।
सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा निर्मित उत्तरापथ की भी यही कहानी है। शेरशाह सूरी ने भी इसका नाम बदल कर ‘सड़क-ए-आजम’ कर दिया था और इतिहासकारों ने इसे ‘सड़क-ए-शेरशाह’ कह कर पुकारना शुरू कर दिया। इसका वर्तमान नाम ‘ग्रैंड ट्रैंक रोड’ अंग्रेजों का दिया हुआ है।
आपको यहां ये और बता दें कि जिस शेरशाह सूरी के बारे में इतिहास की किताब में कसीदे पढ़े गए हैं, वो महज 4 साल (1540-1545) तक ही सत्ता में रहा था लेकिन उतने छोटे अंतराल में भी वो उत्तरा पथ का नाम बदलना नहीं भूला। तथा हिन्दुओं पर ‘जजिया कर’ लगाना नहीं भूला।
शेरशाह सूरी एक पश्तून अफगानी था। शायद इसीलिए इरफान हबीब और रोमिला थापर सरीखे कुंठित वामपंथी इतिहासकारों ने शेरशाह जैसे जेहादी मानसिकता के लोगों को भारत का निर्माणकर्ता बता कर महिमामंडित कर दिया।
अब समय आ गया है कि कुत्सित मानसिकता से ग्रस्त हबीब और थापर जैसे लोगों द्वारा लिखे झूठे इतिहास को अपने शिक्षा पाठ्यक्रम से बाहर कर कूड़ेदान में डाला जाए र ऐतिहासिक तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर वास्तविक गौरवशाली इतिहास को पढ़ाया जाए।
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