घूसकांड में सनसनी: ‘वॉन्टेड’ जज ने खुद तय की थी 15 लाख की कीमत | क्लर्क की गिरफ्तारी के बाद ACB ने हाईकोर्ट से मांगी जज से पूछताछ की अनुमति

मुम्बई 

15 लाख रुपये की भारी-भरकम रिश्वत के हाई-प्रोफाइल केस में अब ACB की जांच ने एक ऐसा मोड़ ले लिया है, जिसने मुंबई की न्यायिक प्रणाली को हिलाकर रख दिया है। सिविल कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एजाज़ुद्दीन सलाउद्दीन काज़ी (judge Ejazuddin Kazi), जिन्हें पहले ही ‘वॉन्टेड’ घोषित किया जा चुका है, न सिर्फ पूरे रैकेट के मास्टरप्लानर बताए जा रहे हैं बल्कि गिरफ्तार क्लर्क चंद्रकांत वासुदेव के बेहद करीबी भी पाए गए हैं।

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जांच में सामने आया है कि जज काज़ी ने ही क्लर्क को निर्देश दिया था कि एक व्यावसायिक भूमि विवाद केस में अनुकूल आदेश दिलाने के लिए शिकायतकर्ता से ₹15 लाख की रिश्वत मांगी जाए। क्लर्क वासुदेव ने यह रिश्ता इतना आगे बढ़ा रखा था कि वह कोर्ट के वॉशरूम तक में शिकायतकर्ता के आदमी को पकड़कर कह बैठा—“साहेब के लिए कुछ करना पड़ेगा।” और जरा इनकार किया नहीं कि धमकी भी मिल गई—“पैसा नहीं दिया तो ऑर्डर आपके खिलाफ जाएगा।”

कैफे में तय हुई डील, वही बना ट्रैप का मैदान

मना करने पर जब शिकायतकर्ता सीधे ACB पहुँचा, तो पूरा ऑपरेशन सेट हुआ। वासुदेव ने जज काज़ी की ओर से पूरे 15 लाख की मांग दोहराई और 10 नवंबर को चेंबूर के एक कैफे में रुपए लेने पहुंचा। इसी दौरान ACB ने उसे रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया।

जज खुद फोन पर ‘डील’ कन्फर्म करते पकड़े गए

ACB के निर्देश पर गिरफ्तारी के तुरंत बाद वासुदेव ने जज काज़ी से गवाहों की मौजूदगी में फोन पर बात की।
पुलिस का दावा है:

  • जज ने रिश्वत की रकम पर सहमति जताई,

  • और क्लर्क से कहा कि पैसे सीधे उनके घर ले आए जाएं।

यानी संदेह की गुंजाइश बची ही नहीं — मामला जज की सीधी और सक्रिय संलिप्तता का लग रहा है।

ACB जब पहुँची घर, जज गायब — घर पर लगा सील

12 नवंबर को ACB टीम जब काज़ी के आवास पर पहुंची तो घर बंद मिला। दूसरे मजिस्ट्रेट और दो गवाहों की मौजूदगी में हाउस सीलिंग पंचनामा किया गया। इस बीच यह भी पता चला कि काज़ी और क्लर्क वासुदेव में व्हाट्सऐप पर लगातार बातचीत होती थी और जज उसकी निजी समस्याओं में भी मदद करते थे — यानी रिश्ता सिर्फ कामकाज तक सीमित नहीं था।

आगे क्या?

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