PNB को सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार | ‘नीलामी के बाद कर लिया समझौता, ये कैसी मिलीभगत है?’

नई दिल्ली 

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पंजाब नेशनल बैंक (PNB) को एक मामले में जमकर फटकार लगाई है। मामला उस समय गंभीर हो गया जब बैंक ने कर्जदार की संपत्ति नीलाम करने के बाद उसी कर्जदार से समझौता कर लिया और नीलामी खरीदार को धोखे में छोड़ दिया।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि यह राष्ट्रीयकृत बैंक की “दुखद स्थिति” है और ऐसी कार्यशैली से नीलामी प्रक्रिया की पवित्रता ही खत्म हो जाएगी।

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अदालत ने सवाल उठाया कि— “बैंक इस सब पर आंखें क्यों मूंदे हुए हैं? अगर नीलामी के बाद भी समझौता होने लगेगा तो कोई भी इसमें भाग लेना नहीं चाहेगा। लोग कहेंगे कि मैं इस झंझट में क्यों पड़ूं, पैसा कहीं और लगा दूं।”

खरीदार ठगा गया, बैंक बोला—‘हमें पता ही नहीं था’

इस पूरे विवाद की जड़ तब पड़ी जब नीलामी खरीदार ने RTGS से ₹42 लाख जमा कर दिए थे। इसके बावजूद बैंक ने उसे अंतिम बिक्री प्रमाणपत्र जारी करने के बजाय उसकी राशि लौटा दी। बैंक का दावा था कि उसे खरीदार द्वारा जमा रकम की जानकारी ही नहीं थी।

खरीदार ने इस पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने पाया कि PNB और कर्जदार के बीच राष्ट्रीय लोक अदालत में समझौता हो गया, जबकि संपत्ति पहले ही नीलाम की जा चुकी थी।

सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख

जस्टिस पारदीवाला ने टिप्पणी की—“अगर आप समझौता करना ही चाहते हैं तो क्या आपको नीलामी खरीदार को लोक अदालत की कार्यवाही में पक्ष नहीं बनाना चाहिए? यह मिलीभगत है।”

अदालत ने बैंक को आदेश दिया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर रिट याचिका बिना शर्त वापस ले और 48 घंटों के भीतर खरीदार को बिक्री प्रमाणपत्र जारी करे। साथ ही कहा कि इस मामले के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई होनी चाहिए।

अटॉर्नी जनरल की सफाई

PNB की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमण ने अदालत में स्वीकार किया कि बैंक से गलती हुई है। उन्होंने कहा,
“मैं बचाव की कोशिश नहीं कर रहा हूं। CMD को भी समझ नहीं आया कि ऐसा क्यों हुआ। वे जांच करेंगे।”

इस पर जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि CMD को तलब करने का उद्देश्य यही है कि बैंक नीतिगत फैसला ले ताकि भविष्य में ऐसी नौबत दोबारा न आए।

सुप्रीम कोर्ट का संकेत

अदालत ने स्पष्ट किया कि SARFAESI मामलों में हाईकोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए और बैंकों को भी इस राह पर नहीं जाना चाहिए। साथ ही चेतावनी दी कि यदि ऐसे मामलों में मिलीभगत या शरारत पाई गई तो बैंक अधिकारियों को सख्त परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। मामले की अगली सुनवाई अगले सप्ताह तय की गई है।

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‘सब के लिए खिलौने’

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