गरमी जब करने लगती है भारी जुल्म
जब भी मन पर छाए उदासी खुद से ही कर लेना हाँसी हंसी जिंदगी की सरगम है
उन आँखों में बसा घनघोर अँधेरा छिपा हुआ था मुस्कुराहट के
आवाज बांधकर जंजीरों से शब्द सो गए
पलकों की कोर से ढलकते उस से पहले रोक दिया उसने
धूप का इक नन्हा कतरा रोज सुबह मेरे घर के अहाते में