‘समस्याएं और ट्रैफिक’

ये जीवन की छोटी बड़ी समस्याएं,
और सड़क का ट्रैफिक,
बिल्कुल समान है एक दूसरे के,
निकलते ही घर से,
देखती हूं दूर से,

राखी बंधवाने आ जाओ…

मैं छोटी हूँ एक परी सी
हूँ मैं तेरी बहना,
राखी बंधवाने आ जाओ

आदमी और जानवर …

अभी तक तो मैंने
आदमखोर शेर का
नाम ही सुना था।
लेकिन अब तो
देख लिया ऐसे लोगों को

आइए पुराने जमाने को याद करते हैं…

सबसे पहले हम
उसी का हाथ छोड़ते हैं,
जिसका हाथ सबसे पहले थाम कर

ऐसी हैं आजकल की लड़कियां…

अब वे अन्याय नहीं सहतीं।
अब वे चुपचाप नहीं रहतीं।
अब वे बेबाक हो सब कहतीं।

ये शहर न होता तो …

ये शहर न होता तो मैं गांव में घर बनाता,
पक्की ईंटों से नहीं कच्ची मिट्टी से सजाता।

स्त्री बदल रही है…

मकान को घर बनाती,
तीज-त्यौहार पर श्रृंगार करती,
चूड़ी पायल खनकाती,
घर को गुलजार करती,

आपरेशन सिंदूर…

जय जय जय माँ भारती,
जय ‘ऑपरेशन सिंदूर’।
जय सेना का साहस समर्पण,

क्यों सुख चपला सा चमके…

यह दुनिया दर्द का दरिया,
पर यहीं हमें रहना है।
अश्रु को समझ कर मोती
जीवन अपना जीना है।
अपना ही गम

छांव की तलाश…

कब से तलाश रही हूँ छाँव
मिल जाए कोई बरगद
उसकी दूर दूर तक फैली
शीतल छाया में,