ये जीवन की छोटी बड़ी समस्याएं,
और सड़क का ट्रैफिक,
बिल्कुल समान है एक दूसरे के,
निकलते ही घर से,
देखती हूं दूर से,
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‘समस्याएं और ट्रैफिक’
ऐसी हैं आजकल की लड़कियां…
अब वे अन्याय नहीं सहतीं।
अब वे चुपचाप नहीं रहतीं।
अब वे बेबाक हो सब कहतीं।
ये शहर न होता तो …
ये शहर न होता तो मैं गांव में घर बनाता,
पक्की ईंटों से नहीं कच्ची मिट्टी से सजाता।
स्त्री बदल रही है…
मकान को घर बनाती,
तीज-त्यौहार पर श्रृंगार करती,
चूड़ी पायल खनकाती,
घर को गुलजार करती,
क्यों सुख चपला सा चमके…
यह दुनिया दर्द का दरिया,
पर यहीं हमें रहना है।
अश्रु को समझ कर मोती
जीवन अपना जीना है।
अपना ही गम
