नई हवा ब्यूरो | जयपुर
सूत्रों से खबर आ रही है कि मुख़्यमंत्री अशोक गहलोत को राजस्थान में मंत्रिमंडल विस्तार में आलाकमान का जरूरत से ज्यादा दखल मंजूर नहीं है। गहलोत ने अपनी नाराजगी आलाकमान तक पंहुचा दी है। वहीं पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट भी अपनी पसंद के लोगों को मंत्रिमंडल में शामिल करने पर अड़े हुए हैं। इसके चलते मंत्रिमंडल का विस्तार अटक गया है। आलाकमान पंजाब की तरह ऐसा फार्मूला निकालने के लिए माथापच्ची करने में लगा है जिससे दोनों ही खेमों की नाराजगी दूर हो सके।
सूत्रों ने बताया कि मुख़्यमंत्री अशोक गहलोत पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट खेमे के केवल दो-तीन विधायकों को ही मंत्रिमंडल में ही लेने को राजी हैं। सूत्रों ने बताया कि गहलोत ने इसमें भी अपनी टर्म्स कंडीशन एप्लाई कर दी है। इसके अनुसार सचिन पायलट खेमे के ये दो-तीन विधायक भी गहलोत की पसंद के होंगे।
टर्म्स कंडीशन एप्लाई, यानी एक तीर से दो शिकार
राजनीतिक प्रेक्षकों का ऐसा मानना है कि मुख़्यमंत्री अशोक गहलोत टर्म्स कंडीशन एप्लाई करके एक तीर से दो शिकार करना चाहते हैं। एक तो यह कि नाम को सचिन खेमे के विधायक मंत्रिमंडल में शामिल हो जाएंगे और दूसरा ये कि इससे सचिन खेमे में टूटन हो जाएगी। एक बार सचिन खेमे में और टूटन हो गई तो गहलोत को अपनी सरकार चलाने की राह आसान हो जाएगी। इससे सचिन हाशिए पर चले जाएंगे। यानी गहलोत खेमा सचिन पायलट को कमजोर करने की रणनीति पर काम कर रहा है।
फ़िलहाल आलाकमान अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों में से किसी को नाराज करने की स्थिति में नहीं है। क्योंकि उसको पता है कि आगामी विधान सभा चुनाव में इसका अंजाम क्या हो सकता है। आलाकमान यह भी अच्छी तरह समझ चुका है कि सचिन पायलट के पास अब खोने के लिए कुछ नहीं है। यदि उनकी नाराजगी दूर नहीं हुई तो सचिन पायलट राजस्थान की कम से कम दो दर्जन विधानसभा सीटों पर कांग्रेस को नुकसान जरूर पहुंचा सकते हैं और यह नुकसान कांग्रेस को भारी पड़ेगा।
गहलोत नहीं चाहते कि सचिन उभर कर आएं
राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि मुख़्यमंत्री अशोक गहलोत नहीं चाहते कि सचिन पायलट राजस्थान की राजनीति में उभर कर आएं। पिछले विधानसभा चुनाव में जब सचिन पायलट उभर कर आए तो, उनको बड़ी चतुराई से कैसे गच्चा दिया, इसके नतीजे सबके सामने हैं। गहलोत की यही रणनीति है कि राजस्थान में सचिन पायलट का उभार किसी तरह नहीं हो पाए। गहलोत ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान परसराम मदेरणा सहित कई जाट नेताओं को उनके उभार से पहले ही बड़ी राजनीतिक चतुराई से निपटा दिया था। यही वजह है कि मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर खींचतान बढ़ गई है।
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