परकोटावासियों को पट्टा मिलने की बढ़ी उम्मीद

भरतपुर 

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राजस्थान के बजट में ‘प्रशासन शहरों के संग’ अभियान शुरू करने की घोषणा के बाद भरतपुर के कच्चा परकोटा पर बसे हजारों लोगों को अपने आवासों के पट्टा मिलने की उम्मीद बढ़ गई है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने बजट भाषण में इस साल दो अक्टूबर से ‘प्रशासन शहरों के संग’ अभियान शुरू करने की घोषणा की थी। परकोटावासियों को उम्मीद है कि इस अभियान के दौरान उनकी पट्टा मिलने की वर्षों पुरानी आस पूरी हो जाएगी।

उल्लेखनीय है कि भरतपुर के कच्चे परकोटे पर बसे दो हजार परिवार पिछले करीब चार दशक से पट्टा के लिए तरस रहे हैं। इसे लेकर वह काफ़ी समय से परकोटा नियमन संघर्ष समिति के बैनर तले आन्दोलन कर रहे हैं। इस संबंध में एक प्रतिनिधि मंडल दो फरवरी को जयपुर में स्वायत्त शासन एवं शहरी निकाय मंत्री शांति धारीवाल से भी मिला था और उनसे मांग की थी कि भरतपुर के कच्चे परकोटे पर बसे दो हजार परिवारों को पट्टा देने का मामला राज्य सरकार की तीन एकसपर्ट कमेटियों के संज्ञान में लाकर समय पर नियमन किया जाए। यदि समय रहते भरतपुर परकोटे के इस नियमन प्रस्ताव को ले लिया जाए तो राज्य सरकार की महत्वपूर्ण जनकल्याणकारी योजना ‘प्रशासन शहरों के संग’ के तहत आवश्यक शिथिलन प्रदान करते हुए इस महत्वपूर्ण प्रकरण का वैधानिक निपटारा करके हजारों पीड़ित परिवारों को राहत प्रदान की जा सकती है। समिति के नेता और नगर निगम में पूर्व नेता प्रतिपक्ष रहे इंद्रजीत भारद्वाज के अनुसार परकोटा वासियों को पट्टा दिलवाने का काम अंजाम तक पहुंचाया जाएगा। समिति के नेताओं ने कहा कि भरतपुर नगर निगम पट्टा जारी करने की सिफ़ारिश राजस्थान सरकार को भेज चुका है। अब इस परकोटे पर आबाद करीब दो हजार लोगों को पट्टा जारी करने की कोई अड़चन बाकी नहीं बची है।

यह है परकोटे का इतिहास
भरतपुर के चारों ओर लगभग 9 किलोमीटर लंबा और 200 से 250 फुट चौड़ा मिट्टी के कच्चे परकोटे का निर्माण 250 वर्ष पूर्व भरतपुर रियासत के संस्थापक ने अन्दर बने किले एवं आबादी को बाहरी दुश्मनों तथा बाढ़ के पानी से सुरक्षा करने के उद्देश्य से बनाया था। उसमें शहर के अन्दर आने-जाने के लिए ग्यारह बड़े-बड़े दरवाजे बनाए गए थे।  देश की आजादी के बाद राजस्थान सरकार ने 12 दिसम्बर, 1968 को कच्ची चार दीवारी (परकोटे) को पुरावशेष मानकर सुरक्षित घोषित किया था।

ऐसे बिगड़ता गया परकोटे का रूप
यह है कि वर्ष 1955 से 1980 तक नगर परिषद, भरतपुर (अब नगर निगम) ने  इस परकोटे पर 260 व्यक्तियों को जमीन विक्रय कर पट्टा देकर जमीन दी गई। जिस पर उन्होंने मकान बना लिए। इसके बाद तो अन्य लोगों ने भी इस पर अवैध निर्माण कर लिए। वर्तमान में इनकी संख्या 1700 से 2000 बताई जा रही है। इसके बाद 20.02 2001 में इस परकोटे को नष्ट प्राय: बताते हुए  कच्ची चारदीवारी में बने रियासतकालीन दरवाजों को ही संरक्षित रखा गया। और जिला कलेक्ट्रेट भरतपुर को पत्र के माध्यम से कच्चे डण्डे पर अतिक्रमणों की सूची सुपुर्द की गई। इसके बाद इस पर आबाद लोगों द्वारा उन्हें पट्टा देने की मांग उठी। इस पर परकोटा  की भूमि को नगर परिषद् भरतपुर को नियमन कराने के उद्देश्य से हस्तांतरित कर दी गई। पुरातत्व विभाग ने अनापत्ति भी जारी कर दी।





 

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