जयपुर/उदयपुर
मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर (Mohanlal Sukhadia University Udaipur) में कुलगुरु के आपत्तिजनक बयान का मामला अब और गंभीर हो गया है। राज्यपाल एवं कुलाधिपति ने एक आदेश जारी कर उदयपुर संभागीय आयुक्त की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय जांच समिति गठित की है। समिति में अतिरिक्त संभागीय आयुक्त, विश्वविद्यालय के वित्तीय सलाहकार, जिला कलेक्टर और आरएनटी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य सदस्य बनाए गए हैं। यह समिति कुलगुरु के विरुद्ध प्राप्त शिकायतों की जांच कर अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपेगी।

इसी बीच, अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ, राजस्थान (उच्च शिक्षा) का प्रतिनिधिमंडल शुक्रवार को समिति अध्यक्ष श्रीमती प्रज्ञा केवलरमानी से मिला और उन्हें ज्ञापन सौंपा। महासंघ ने ज्ञापन में लिखा कि विश्वविद्यालय की कुलगुरु ने 12 सितंबर को आयोजित भारतीय ज्ञान प्रणाली एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया।
महासंघ ने आरोप लगाया कि कुलगुरु ने महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान जैसे राष्ट्रीय नायकों की तुलना विदेशी आक्रांता अकबर से कर दी और इतिहास के सबसे क्रूर शासकों में गिने जाने वाले औरंगज़ेब को सबसे कुशल प्रशासक बताकर महिमामंडित किया। महासंघ ने इसे तथ्यहीन, राष्ट्रविरोधी और भारतीय संस्कृति का अपमान करार दिया।
महासंघ के महामंत्री प्रो. रिछपाल सिंह ने कहा कि कुलगुरु के शब्द व्यक्तिगत विचार नहीं, बल्कि शैक्षिक विमर्श को दिशा देने वाले माने जाते हैं। ऐसे वक्तव्य विद्यार्थियों को गुमराह करते हैं और राष्ट्रीय शिक्षा नीति की मूल भावना के विपरीत हैं। महासंघ के अध्यक्ष प्रो. मनोज बहरवाल ने कहा कि अधिनियम के तहत कुलगुरु के दायित्व और मर्यादाएँ स्पष्ट रूप से वर्णित हैं। एक शासकीय विश्वविद्यालय की कुलगुरु से इस प्रकार का आचरण न केवल अनुचित है, बल्कि शिक्षा-जगत और शोध-परंपरा दोनों के लिए हानिकारक है।
महासंघ ने स्पष्ट किया कि भारतीय इतिहास और महान विभूतियों का अपमान किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं होगा। संगठन ने जांच समिति से अपेक्षा जताई कि वह कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुशंसा करे, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।
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