उदयपुर
सघन कृषि एवं अधिक उत्पादन की चाह में हम भूमि का अत्यधिक दोहन कर रहे हैं और जितने पोषक तत्व पौधे भूमि से ले रहे हैं, उसके अनुपात में हम उन पोषक तत्वों की पूर्ति नहीं कर रहे हैं। नतीजतन भूमि में विभिन्न आवश्यक पोषक तत्वों की कमी होती जा रही है जिससे उत्पादन में ठहराव सा आ गया है और कुछ क्षेत्रों में उत्पादन में कमी भी देखी जा रही है। मृदा के जीवांश में भंयकर कमी आ रही है जो एक चिन्ता का विषय है। ऐसी ही कुछ चिंता देश की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में प्रसार शिक्षा निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा आयोजित ऑनलाइन व्याख्यान एवं परिचर्चा कार्यक्रम के तीसरे दिन पोषक तत्व प्रबंधन विषय पर आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त की गई। कार्यक्रम में बताया गया कि इस समस्या का एक ही उपाय है कि हम पोषक तत्वों का उचित प्रबन्धन करें। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा तीसरे दिन का कार्यक्रम कृषि विज्ञान केन्द्र, राजसमन्द के प्रगतिशील किसानों के लिए आयोजित किया गया था । इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य को पोषक तत्वों के महत्व एवं प्रबंधन को अपनाने के लिए प्रेरित करना था।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति डाॅ. नरेन्द्र सिंह राठौड़ ने कहा कि यदि किसान पोषक तत्व प्रबंधन ठीक प्रकार से करें तो मृदा उर्वरता एवं उत्पादकता दोनों को बढाया जा सकता है।अब समय आ गया है कि किसानों को समन्वित पोषक तत्वों का उचित प्रंबधन अपनाना चाहिए जिससे कि मृदा में व्यापक उर्वरता को संतुलित बनाए रखा जा सके। उन्होंने आगाह किया कि लगातार खेती करते रहने से मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक क्रियाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।
जमीन को भी चाहिए 15 पोषक तत्व
डाॅ. नरेन्द्र सिंह राठौड़ ने जमीन में पोषक तत्वों की कमी कैसे हो रही है, इसको सरल शब्दों में समझाया और बताया कि फसलें अच्छी बढ़वार और भरपूर उत्पादन के लिए जमीन से अपनी खुराक के रूप में 15 पोषक तत्व लेती हैं, जबकि 3 पोषक तत्व हवा तथा जल से स्वतः मिल जाते हैं। जमीन में इन सभी 15 पोषक तत्वों की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध होना बहुत जरूरी है। यदि इनमें से एक भी पोषक तत्व की कमी होती है तो उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसलिए किसानों को चाहिए कि भूमि में उर्वरकों साथ-साथ जैविक खादों, जैव उर्वरकों एवं हरी खादों का प्रयोग करें। जैविक खादों से फसलों को सभी पोषक तत्वों की संतुलित मात्रा मिल जाती है, मृदा संरचना अच्छी हो जाती है तथा मिट्टी में लाभकारी जीवों की संख्या बढ़ जाती है जो जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने में मदद करती है। मुख्यरूप से फसलों में काम में आने वाली जैविक खादों में हरी खाद, गोबर की खाद, कम्पोस्ट, सुपर कम्पोस्ट, वर्मीकम्पोस्ट, प्राॅम जैविक खाद, खलियां, विभिन्न जैव उर्वरक, रोइजोबियम कल्चर तथा वैम कल्चर आदि पदार्थों का समावेश करना चाहिए।
बहुत अधिक मात्रा में उर्वरकों का उपयोग घातक
कुलपति ने कहा कि उर्वरकों का भरपूर उपयोग होने के बावजूद फसल उत्पादन में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है क्योंकि इससे मृदा में सूक्ष्म तत्वों की बेहद कमी हो गई है। आज जरूरत उर्वरक उपयोग दक्षता को बढ़ाने की है ना कि उनका अधिक उपयोग करने की। डाॅ. राठौड़ ने नैनो उर्वरक, जैव उर्वरक, कस्टमाईज उर्वरक, बाॅयो-स्टीम्यूलेन्ट, वर्मीकम्पोस्ट एवं पानी में घुलनशील उर्वरकों के अधिक उपयोग पर जोर दिया। किसानों को इस बात पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है कि उर्वरकों का उपयोग किस दर से करें, किस समय पर करें, किस स्थान पर करें एवं किस विधि से करें। इन बातों के सही समन्वय से हम ना केवल अधिक फसल उत्पादन प्राप्त कर सकते है बल्कि मृदा की उर्वरता को भी अधिक समय तक कायम रख सकते है।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डाॅ. राम हरि मीणा, सह-आर्चाय एवं विभागाध्यक्ष, मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, मप्रकृप्रौविवि, उदयपुर ने पोषक तत्व प्रंबधन के विभिन्न पहलुओं एवं उसके महत्व पर प्रकाश डाला। विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों, फसलों में उनके प्रमुख कार्यों तथा इनकी कमी से फैलने वाली बीमारियों आदि के बारे में किसानों को विस्तृत जानकारी प्रदान की।डाॅ. राम हरि मीणा ने बताया कि मृदा वह प्राकृतिक पिण्ड है जो विच्छेदित एवं अपक्षयित खनिज पदार्थों तथा कार्बनिक पदार्थों के सड़ने से बने विभिन्न पदार्थों के परिवर्तनशील मिश्रण से प्रोफाइल के रूप में संश्लेषित होती है। यह पृथ्वी को एक पतले आवरण के रूप में ढकती है तथा जल एवं वायु की उपयुक्त मात्रा को मिलाने पर पौधों को यांत्रिक आधार तथा आंशिक जीविका प्रदान करती है। बिना अच्छी मृदा के खेती संभव नहीं है। व्याख्यान के दौरान राजसमंद के कृषक जयंत पालीवाल ने राइजोबियम जैव उर्वरक के उपयोग पर प्रश्न पूछा जिसपर डाॅ. राम हरि ने बताया कि इसका उपयोग सर्वाधिक लाभकारी तब रहेगा जब इसे बीजोपचार में उपयोग करें। कार्यक्रम के दौरान कुलपति के विशेषाधिकारी डाॅ. विरेन्द्र नेपालिया ने पोषक तत्व प्रंबधन के महत्व पर संक्षिप्त जानकारी प्रदान की। कार्यक्रम के अन्त में कृषि विज्ञान केन्द्र, राजसमंद के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, डाॅ. पी.सी. रेगर ने धन्यवाद ज्ञापित किया। संचालन डाॅ. लतिका व्यास, प्रोफेसर, प्रसार शिक्षा निदेशालय, उदयपुर ने किया। कार्यक्रम के आरम्भ में निदेशक, प्रसार शिक्षा निदेशालय,उदयपुर,डाॅ. सम्पत लाल मून्दड़ा ने पोषक तत्वों के महत्व एवं प्रबंधन पर जानकारी दी।
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