जीतेंगे यह जंग दुबारा…

कविता 

डॉ. विनीता राठौड़


कोरोना के घातक तीर चल रहे
घर-घर में ये पीर भर रहे

मेडिकल ढांचे हो गए धराशायी
उपचार को तरसते मरीज बहन-भाई

विचलित करती तस्वीरें बन्द करो
हो सके तो पीर पराई कम करो

छोटी सी भी एक गलती पहुँचा देगी वहां
पछतावे के सिवाय कुछ नहीं होगा जहां

लेना होगा संकल्प हर एक को
बचाना है गर मानव जीवन तो

आरोप-प्रत्यारोप हो जाएं बंद
सब मिलकर लड़ें यह जंग

भूलो-बिसरो आपस की हर नाराजगी
दिखा दो जगत को एकता की बानगी

जितनी जिससे बन पाए
उतनी मदद का हाथ बढ़ाएं

निभाएँ सबअपनी जिम्मेदारी
कष्ट निवारण में हो सबकी भागीदारी

पीर हरो और धीर धरो
दुआओं में अपनी सबको शामिल करो

गवाह है गौरवशाली इतिहास हमारा
संकट में सदैव निभाया हमने भाईचारा

जान किसी  की भी असमय चली जाए नहीं है गवारा
हौंसलों से जीतेगें कोरोना से यह जंग दुबारा।

( लेखिका राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा में प्राणीशास्त्र की सह आचार्य हैं)




 

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