‘राजसेस मॉडल’ में उलझी राजस्थान की उच्च शिक्षा, शिक्षकों ने की सोडाणी रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग

जयपुर 

राजस्थान (Rajasthan) की उच्च शिक्षा एक बार फिर बड़े विवाद के केंद्र में है। अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ (उच्च शिक्षा) (ABRSM) ने राज्य सरकार के सामने राजसेस महाविद्यालयों की दिशा और दशा को लेकर गंभीर आपत्तियाँ दर्ज की हैं। महासंघ के प्रदेश महामंत्री प्रो. रिछपाल सिंह ने मुख्यमंत्री के नाम भेजे ज्ञापन में साफ लिखा है कि राजस्थान कॉलेज एजुकेशन सोसाइटी (RAJ-CES/राजसेस) मॉडल न तो व्यावहारिक है और न ही उच्च शिक्षा के लिए सुरक्षित व स्थायी ढांचा साबित हो रहा है।

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2022–23 में शुरू हुआ ‘अस्थायी मॉडल’ अब संकट बो रहा—महासंघ का आरोप

ज्ञापन के अनुसार, पिछली सरकार ने नए महाविद्यालयों और कई राजकीय कॉलेजों में नए विषय तो खोल दिए, पर पूरा अकादमिक ढांचा विद्या संबल योजना की गेस्ट फैकल्टी पर आधारित तदर्थ व्यवस्था पर टिका था।

  • अधूरी इमारतें

  • सीमित संसाधन

  • स्थायी फैकल्टी का अभाव

  • राजकीय ढाँचे के समानांतर एक अस्थायी व्यवस्था

इन सभी कारणों से यह मॉडल शुरुआत से ही “कमजोर और अस्थिर” बताया गया है। संगठन का कहना है कि यह ढांचा उच्च शिक्षा की गरिमा और गुणवत्ता—दोनों पर सीधा प्रहार करता है।

महासंघ ने कहा कि 2023 चुनावों के बाद नई सरकार से पूरे शिक्षण समुदाय को उम्मीदें थीं। मुख्यमंत्री की ओर से संगठन के अधिवेशन में दिए गए आश्वासन को शिक्षा जगत ने स्वागत योग्य माना, पर इसके बाद घटनाक्रम उलटे ही चले।सरकार ने समीक्षा के  लिए सोडाणी समिति गठित की, जिसने समय पर अपनी रिपोर्ट भी दे दी, लेकिन—

  • रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं,

  • सिफारिशों पर कोई कार्रवाई नहीं,

  • उलटे राजसेस मॉडल के तहत नए विषय और कॉलेज पहले की तरह ही खोले जा रहे हैं।

इससे शिक्षकों, विद्यार्थियों और अभिभावकों में निराशा व गहरा भ्रम पैदा हो गया है।

महासंघ ने यह जानकारी “अत्यंत चिंताजनक” बताई कि सरकार राजसेस कॉलेजों में पाँच वर्ष की अवधि के लिए नियत वेतन पर अस्थायी नियुक्तियों की दिशा में आगे बढ़ रही है।
प्रो. रिछपाल ने कहा—

  • यह व्यवस्था NEP–2020 की मूल भावना के विरुद्ध है।

  • NEP कहती है कि उच्च शिक्षा संस्थान बड़े, बहुविषयक और स्थायी संकाय वाले होने चाहिए।

  • राजसेस मॉडल इसके उलट छोटे, अस्थायी और संसाधनविहीन कॉलेज खड़ा करता है।

संगठन ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया गुजरात संविदा शिक्षकों संबंधी फैसले का हवाला देते हुए कहा—

“संविदा व्यवस्था शोषणकारी और विधिक रूप से भी टिकाऊ नहीं। पाँच साल की अस्थायी नियुक्ति भविष्य को अस्थिर करने जैसा कदम है।”

संगठन के प्रदेश अध्यक्ष प्रो. मनोज बहरवाल ने कहा कि स्थायी संकाय के बिना किसी भी कॉलेज में शोध संस्कृति विकसित नहीं हो सकती, नवाचार असंभव है, छात्र–शिक्षक अनुपात बिगड़ जाता है, NAAC और UGC के मानक पूरे नहीं हो पाते।

अधूरी इमारतों और अस्थायी शिक्षकों के भरोसे महाविद्यालय चलाना सीधे-सीधे विद्यार्थियों को कमजोर शिक्षा देना है—जो उनकी प्रतियोगी तैयारी और बौद्धिक दृष्टि को नुकसान पहुँचाता है।

महासंघ का कहना है कि राजसेस मॉडल आर्थिक रूप से भी एक छलावा है।
फीस से होने वाली आय इतनी कम है कि बिजली, पानी, सफाई जैसे बुनियादी खर्च भी नहीं निकल पाते। अंततः भवन, प्रयोगशाला, उपकरण, लाइब्रेरी और वेतन आदि का पूरा खर्च राज्य सरकार को ही उठाना पड़ता है। इतिहास बताता है कि सोसाइटी मॉडल पहले भी राजस्थान में असफल हुआ है—इंजीनियरिंग कॉलेजों का उदाहरण अभी भी राज्य के सामने है।

महासंघ की सरकार को सीधी मांगें—“राजसेस बंद करो, स्थायी भर्ती शुरू करो”

प्रो. बहरवाल ने सरकार से कहा—

  1. राजसेस में संविदा नियुक्ति प्रक्रिया तुरंत रोकी जाए।

  2. सोडाणी समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।

  3. सभी राजसेस कॉलेजों व विषयों को नियमित राजकीय ढांचे में समाहित किया जाए।

  4. स्थायी शिक्षक भर्ती शीघ्र प्रारंभ की जाए।

  5. उच्च शिक्षा को ‘संविदा प्रयोगशाला’ बनने से बचाया जाए।

आंदोलन की चेतावनी

महासंघ ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने इस विषय पर शीघ्र और ठोस निर्णय नहीं लिया, तो संगठन राज्यव्यापी आंदोलन चलाने के लिए विवश होगा।

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