समायोजित शिक्षाकर्मी चले आंदोलन की नई राह पर, यहां जानें क्या है उनकी रणनीति

जयपुर 

राजस्थान के प्रत्येक समायोजित शिक्षाकर्मी ने अपनी समस्याओं को लेकर अब एक नई राह पकड़ ली है। अब हर समायोजित शिक्षाकर्मी ने तय किया है वे अपने-अपने स्तर पर समस्याओं का मांग पत्र मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को भेजेंगे। इसके लिए राजस्थान समायोजित शिक्षाकर्मी संघ की प्रदेश इकाई ने मांग पत्र का प्रारूप बना कर प्रदेशभर की सभी इकाइयों को भेजा है जहां से सभी समायोजित शिक्षाकर्मी मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को भेजेंगे।

इस अभियान की सफलता के लिए  राजस्थान समायोजित शिक्षाकर्मी संघ ने समायोजित शिक्षाकर्मी संयोजन समिति का गठन किया है। यह समिति संभाग स्तर पर निर्देशित कर इस अभियान को सफल बनाएगी। संयोजन समिति (संरक्षण मण्डल) में सरदार सिंह बुगालिया, प्रो. एम. सी. मालू, शिवशंकर नागदा और गोपाल छंगाणी को संयोजक बनाया गया है जबकि दिनेश विजयवर्गीय और  डॉ. प्रभा पारीक उप संयोजक बनाए गए हैं।

समायोजित शिक्षाकर्मी संघ के प्रदेश महामंत्री शिवशंकर नागदा के अनुसार संयोजन समिति में संभाग संयोजक के तौर पर डॉ. आराधना आर्य, संजय पंड्या, मनोहर सिंह पातावत, केसरी चन्द लूखा, अजय पंवार, ईश्वर सिंह शेखावत, ओमपाल सिंह और श्रीमती ललिता सिंह को शामिल किया गया है।

प्रदेशाध्यक्ष सरदार सिंह बुगालिया ने कहा कि संगठन ने पदोन्नति की मांग को प्राथमिकता से उठाया है। सन् 2011 से लगातार सरकार से मांग पत्र के द्वारा ज्ञापन तथा शिष्ट मण्डल व आन्दोलनों के माध्यम से इस जायज मांग को पूरा करने के लिए मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री स्तर पर प्रयास किए जाते रहे हैं व संघ ने न्यायालय में भी सोसायटी का गठन कर इस बाबत याचिका दायर की है। न्यायालय ने भी अपने निर्णय में इस मांग को जायज मानते हुए राज्य सरकार को पदोन्नति के लिए सहानुभूतिपूर्वक विचार करने के निर्देश दिए। इसके बाद भी  समायोजित शिक्षाकर्मियों के  प्रति सरकार की निरंकुश व हठधर्मिता की दोयम नीति बरकरार है।

बुगालिया ने कहा कि इसीलिए पदोन्नति की मांग को पुरजोर ढंग से ठोस व कारगर रणनीति के तहत सरकार से मांग किए जाने का निर्णय किया गया। नीति के तहत तय हुआ कि न्यायालय के निर्देशों का उल्लेख करते हुए प्रदेशभर का प्रत्येक समायोजित कार्मिक (सेवारत) मांगपत्र के द्वारा व्यक्तिगत रूप से मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव राजस्थान सरकार से आग्रह करेगा।

राजस्थान सरकार कैसे मामले को लटका-अटका और भटका रही है; इसे ऐसे समझिए 

  • सेवा शर्तों को विनियमित करने के उद्देश्य से राजस्थान गैर सरकारी शैक्षिक संस्था अधिनियम 1989 व उसके नियम 1993 की धारा 29 व नियम 34 के अन्तर्गत यह स्पष्ट किया गया था कि अनुदानित शिक्षण संस्था में अनुदानित पदों पर कार्यरत शिक्षकों एवं कर्मचारियों की सेवा शर्तें  राज्य सरकार में समकक्ष पदों पर कार्यरत शिक्षकों एवं कर्मचारियों की सेवा शर्तों से कम नहीं होंगी। 
  • राजस्थान उच्च न्यायालय व  सर्वोच्च न्यायालय ने भी यह स्पष्ट किया है कि अनुदानित पदों पर कार्यरत शिक्षक एवं कर्मचारी की सेवा शर्तें  राज्य सरकार में समकक्ष पदों पर कार्यरत शिक्षकों एवं कर्मचारियों की सेवा शर्तों से कम नहीं होगी।
  • राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर बैंच ने राजस्थान समायोजित शिक्षाकर्मी वैलफेयर सोसायटी द्वारा दायर DB Civil Writ petition No 7568/2012 में यह आदेश प्रदान किया कि  राजस्थान स्वैच्छिक ग्रामीण शिक्षा सेवा में समायोजित कर्मचारियों को यह छूट होगी कि वह राज्य सरकार से यह निवेदन करें कि राज्य सरकार राजस्थान स्वैच्छिक ग्रामीण शिक्षा सेवा में पदोन्नति के अलग से प्रावधान करें तथा राज्य सरकार से यह अपेक्षा की जाती है कि पदोन्नति के मामले में सहानुभूति पूर्वक विचार करें। जोधपुर बैंच के इस आदेश दिनांक 01 फ़रवरी 2018 को सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली द्वारा यथावत रखा।
  • राजस्थान स्वैच्छिक ग्रामीण शिक्षा सेवा में समायोजित सभी कर्मचारी एवं शिक्षक राज्य सरकार की अन्य शिक्षा सेवा में कार्यरत शिक्षकों एवं कर्मचारियों के समकक्ष योग्यताधारी है तथा वे भी राज्य सरकार के समकक्ष शिक्षकों एवं कर्मचारियों के अनुसार ही अपने पदों के दायित्व का निर्वाह करते है, इसके बाद भी राजस्थान स्वैच्छिक ग्रामीण शिक्षा सेवा में कार्यरत शिक्षकों एवं कर्मचारियों के लिए पदोन्नति का प्रावधान नहीं किया गया है।
  • समायोजित शिक्षाकर्मियों की मांग है कि समान कार्य, समान योग्यता, समान दायित्व के सिद्धान्त के आधार पर राजस्थान स्वैच्छिक ग्रामीण शिक्षा सेवा 2010 के नियम 05 (iv) में यथोचित संशोधन कर सभी शिक्षकों एवं कर्मचारियों को पदोन्नति के समान अवसर प्रदान किए जाएं।
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