हलैना (भरतपुर)

विष्णु मित्तल
अभी तक धरातल पर नहीं उतरा ईस्टर्न राजस्थान प्रोजेक्ट
पूर्वी राजस्थान के जयपुर, दौसा एवं भरतपुर जिले के लिए कभी वरदान रही बाणगंगा नदी में साल 1997 के बाद पानी की आवक नहीं हुई है। बिना सोच-विचार के जगह-जगह बन दिए गए एनिकट, अवैध रेत की निकासी और अतिक्रमण ने इसकी ये हालत की है। साथ ही कम बरसात का होना भी नदी में पानी की आवक के रुकावट का कारण है। ये बाधाएं नहीं होतीं तो आज पूर्वी राजस्थान रेगिस्तान की तरफ नहीं बढ़ रहा होता। पर सरकारी सिस्टम ने सब कुछ तहस-नहस करके रख दिया है।
साल 1997 में भरतपुर जिले के गांव पथैना तथा साल 2019 में दौसा जिले के बांदीकुई के पास तक पानी की आवक हुई। उसके बाद नदी में आगे पानी नहीं पहुंचा। साल 2017 में बाणगंगा नदी का चम्बल नदी से मिलान को तत्कालीन मुख्यमंत्री बसुन्धरा राजे ने करीब 125 करोड़ का बजट स्वीकृत किया। प्रथम चरण में बजट की करीब 10 करोड़ राशि से कोटा व झालावाड़ जिले में कार्य प्रारम्भ हुआ, जिसके बाद साल 2018 राज्य की नदियों का चम्बल नदी से मिलान तथा बरसात के दिनों में समुद्र में व्यर्थ जाने वाले चम्बल नदी के पानी का उपयोग लेने के लिए पूर्वी राजस्थान के 13 जिले को सिंचाई एवं पेयजल से लाभाविन्त करने को ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट तैयार कर केन्द्र में भेजा गया, जिसमें नीति आयोग की गाइडलाइन के तहत केन्द्र सरकार की 61 प्रतिशत तथा राज्य सरकार की 39 प्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित की गई।
केन्द्र व राज्य सरकार की हठधर्मी तथा पूर्वी राजस्थान की कमजोर राजनीति के कारण नदी की हालत दयनीय है और गत दिन केन्द्र सरकार द्वारा देश के पानी पर आधारित 16 प्रोजेक्टों को राष्ट्रीय स्वीकृति प्रदान करना तथा ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट की स्वीकृति प्रदान नहीं करना एवं राष्ट्रीय प्रोजेक्ट का दर्जा नहीं देने से पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों के लोगों के अरमानों पर पानी फिर गया। उक्त प्रोजेक्ट एवं चम्बल नदी के पानी के लिए अब किसान संगठित होने लगे हैं, ग्राम पंचायत स्तर पर बाणगंगा नदी बचाओ समितियां गठित होने लगी हैं। प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री के नाम पोस्टकार्ड अभियान भी चलाया गया है। किसान संघर्ष समिति के संयोजक इन्दलसिंह जाट भुसावर,वैर, नदबई, बयाना उपखण्ड क्षेत्र के 50 से अधिक गांवों में सभाएं कर चुके हैं।
हाईकोर्ट तक पहुंचा बाणगंगा प्रकरण
भरतपुर जिले के पूर्व जिला प्रमुख खैमकरणसिंह तौली ने साल 2016-17 में पूर्वी राजस्थान की बाणगंगा नदी की हालत तथा जल प्रवाह क्षेत्र बने एनिकट व अतिक्रमण को लेकर आन्दोलन प्रारम्भ किया, जिसको लेकर तौली ने हाई कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया। तब कोर्ट ने तत्कालीन जयपुर, दौसा, भरतपुर के जिला कलक्टर तथा सिंचाई विभाग के आलाधिकारियों को तलब किया और नदी के एनिकट व अतिक्रमण हटवाने के आदेश हुए। इससे सरकार एवं प्रशासन में खलबली मची,जो हरकत में आए,कुछ स्थान से एनिकट व अतिक्रमण हटे। पर सरकारी सिस्टम फिर ढीला हो गया है।
बाणगंगा नदी की सहायक नदियां
बाणगंगा नदी को कई नाम से जाना जाता है। बाणगंगा के अर्जन की गंगा , ताला नदी एवं रूण्डित नदी उपनाम है। बाणगंगा नदी की कई सहायक नदियां हैं, जिनका बरसात के दिनों में पानी उक्त नदी में मिल हो जाती है, जो सुरी नदी, गुमटी नाला, पलासन नदी, सॅवान नदी है। सुरी नदी का निकास दौसा जिले के की पहाड़ियों से निकलती है और कल्लई गांव के पास बाणगंगा नदी में मिल जाती है। सॅवान नदी अलवर जिले के गांव अंगरी के पास की पहाड़ियों से निकलती है और गांव जुठिआरा के पास बाणगंगा में मिल जाती जाती है। पलासन नदी भी अलवर जिले के गांव राजपुरा के पास के पहाड़ियों से निकल कर गांव इण्डाना के पास बाणगंगा नदी में मिल जाती है।
केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री को भी समस्या से करा चुके हैं अवगत
भरतपुर-अलवर जिले की सूखी पड़ी नदियों का चम्बल नदी से मिलान तथा ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट, पूर्वी राजस्थान के जिले की सिंचाई व पेयजल समस्या, नगर पालिका खेरलीगंज, भुसावर, वैर, नदबई क्षेत्र की पेयजल समस्या के समाधान के लिए कठूमर के पूर्व विधायक रमेश खींची, नगर पालिका खेरलीगंज के चेयरमेन संजय गीजगढ़िया एवं पूर्व प्रधान गोपालसिंह नरूका के नेतृत्व में अलवर, भरतपुर, धौलपुर, दौसा जिले के भाजपा कार्यकर्ता व गणमान्य नागरिकों के प्रतिनिधि केन्दीय जलशक्ति मंत्री गजेन्द्रसिह शेखावत को भी मामले से अवगत करा चुके हैं।
बाणगंगा बचाओ समिति का गठन
प्रारम्भ किसान संघर्ष समिति राजस्थान के प्रदेश संयोजक इन्दलसिंह जाट ने ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट की स्वीकृति एवं प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय दर्जा दिलाने के लिए वैर, भुसावर, नदबई पंचायत समिति क्षेत्र में ग्राम पंचायत स्तर बाणगंगा नदी बचाओ समितियां गठित करना प्रारम्भ कर दिया है, ग्राम पंचायत आमौली, बाछरैन, धरसौनी, हतीजर, ललित मूडिया, जीवद, झारोटी आदि में कमेटियां बन चुकी हैं।
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