अब अपनी बात …

जब मैं स्नातक प्रथम वर्ष का छात्र था , दरअसल उसी समय मैंने राजस्थान के पूर्वी सिंह द्वार भरतपुर से एक स्थानीय समाचार पत्र ‘ दैनिक अणिमा ‘ से पत्रकारिता की शुरुआत की। उससे पहले कुछ महीनों तक लक्ष्मण मन्दिर चौक पर लगे बोर्ड पर स्थानीय खबरों और मुद्दों को लेकर लेखन भी किया। इसे अखबार की भाषा में ‘ भित्ति पत्र ‘ कहा जाता है। कुछ काल सांध्य दैनिक हंटर के साथ बीता। इसके बाद जनसत्ता से जुड़ा और फिर 1988 के अक्टूबर माह में राजस्थान पत्रिका में एण्ट्री मिली। छह माह तक अवैतनिक ट्रेनिंग और फिर मई-1989 में तीन सौ रुपए मासिक पगार पर अंशकालिक नियुक्ति। राजस्थान पत्रिका का सफर काफ़ी लम्बा रहा। 1988 से शुरू होकर 2012 तक चला। और इसके बाद अब दैनिक नवज्योति। आकाशवाणी जयपुर,आगरा और दिल्ली के केन्द्रों से भी बराबर जुड़ा रहा। वर्ष 1999 के आसपास
‘ आज तक ‘ न्यूज चैनल के लिए काम करने का मौका भी मिला । पर तब राजस्थान पत्रिका के लिए कार्य करने का जुनून था, इसलिए तब वह मौका मैंने छोड़ दिया। नवभारत टाइम्स जयपुर संस्करण के लिए भी मैंने स्वतंत्र पत्रकारिता की। साप्ताहिक ‘ इतवारी पत्रिका ‘ के लिए भी खूब लिखा।

  • राजस्थान पत्रिका ने मुझे वर्ष-1995 के ‘ कड़वा-मीठा-सच ‘ कालम के लिए राज्य स्तरीय जयपुर संस्करण के प्रथम पुरस्कार से नवाजा। तत्कालीन मुख्यमंत्री भैंरोंसिह शेखावत के मुख्य आतिथ्य में हुए कार्यक्रम में आंध्रप्रदेश के सबसे बड़े समाचार -पत्र ‘ इनाडु ‘ और ‘ ईटीवी ‘ के प्रबंध निदेशक और संपादक रामोजीराव ने यह पुरस्कार प्रदान किया। यह मेरी ख़ुशी का अद्भुत पल था।
  • पत्रकारिता के क़रीब 36-37 साल के सफर में कई खट्टे-मीठे अनुभव हुए। प्राणघातक हमले हुए। सम्मान भी मिले। इस पूरे सफर में मेरी जो सबसे बड़ी कमाई रही वह था – भरोसा और साख। यही मेरी सबसे बड़ी पूंजी है। हालांकि मुझे मित्रों और परिवार के लोगों से कई बार यह उलाहना मिलता रहा – तुमको क्या मिला? मेरा हर बार एक ही जवाब होता था- भरोसा और साख ।

योगेन्द्र गुप्ता
संपादक