80 वर्षीय दादाजी में जीने की अदम्य इच्छा थी। लेकिन पिछले दिनों, शहर में उनके कई परिचित, रिश्तेदार और मित्र एक-एक कर भगवान को प्यारे हो गए। इस कारण दादाजी की सकारात्मकता भी डगमगाने लगी और उनके मन में
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दंश…
कैसी हो अपेक्षा? बाहर निकली तो किराएदार सामने पड़ गई। ‘अच्छी हूं भाभी; आज फिर देर हो गई ऑफिस को …
