जयपुर
राजस्थान सरकार ने एक अधिसूचना के जरिए एक नियम बना दिया, लेकिन उसे लागू करने का उसका तौर -तरीका उसके उच्च शिक्षा विभाग में देख लीजिए। इस तौर तरीके ने शिक्षकों के बीच ही विभेद की दीवार खींच दी है। गहलोत सरकार के काम करने का यह तौर-तरीका राजस्थान स्वेच्छा ग्रामीण शिक्षा सेवा 2010 (RVRES) के महाविद्यालय शिक्षकों को भारी पड़ रहा है।
ये महाविद्यालय शिक्षक वो हैं जिनको सरकार ने अनुदानित शिक्षण संस्थाओं से राजकीय सेवा में लेकर समायोजित किया थाऔर इनके लिए राजस्थान स्वेच्छा ग्रामीण शिक्षा सेवा 2010 (RVRES) नियम बना दिए। पर अभी भी इन कॉलेज शिक्षकों के साथ राजस्थान की सरकार नियमों की अनदेखी कर दोयम दर्जे का व्यवहार कर रही है। राजस्थान विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ रुक्टा (राष्ट्रीय) ने इस अनदेखी को लेकर राजस्थान सरकार का ध्यान आकृष्ट किया है।
यह है मामला
दरअसल राजस्थान सरकार ने 2 फरवरी, 2018 को एक अधिसूचना जारी कर राज्य के सरकारी महाविद्यालयों में कार्यरत सभी व्याख्याताओं के पदनाम बदल कर आचार्य/सह/सहायक आचार्य कर दिए थे। ये नियम उसने सरकारी महाविद्यालयों में पहले से कार्यरत शिक्षकों पर तो लागू कर दिया, लेकिन अनुदानित शिक्षण संस्थाओं से समायोजित किए गए सरकारी सेवा में लाए गए कॉलेज शिक्षकों पर लागू करने में टालमटोल रवैया अपना रही है। यानी सरकार ने कॉलेज शिक्षकों के बीच भेदभाव की लकीर खींच दी है।
रुक्टा ( राष्ट्रीय ) के महामंत्री डॉ.सुशील कुमार बिस्सु ने उच्च शिक्षा मंत्री को पत्र लिखकर मांग की है कि राजस्थान सरकार द्वारा 2 फरवरी, 2018 को जारी अधिसूचना के अनुसार राजकीय महाविद्यालयों में कार्यरत राजस्थान स्वेच्छा ग्रामीण शिक्षा सेवा 2010 (आरवीआरईएस) महाविद्यालय शिक्षकों का पदनाम भी बदल कर आचार्य/सह आचार्य/सहायक आचार्य किया जाए।
डॉ.सुशील कुमार बिस्सु ने इस बाबत उच्च शिक्षा मंत्री को एक पत्र भी लिखा है। पत्र में बताया गया है कि राजस्थान सरकार द्वारा 2 फरवरी 2018 को जारी अधिसूचना द्वारा राज्य के महाविद्यालयों में कार्यरत सभी व्याख्याताओं के पदनाम आचार्य/सह/सहायक आचार्य कर देने के बावजूद महाविद्यालयों के RVRES शिक्षकों का पदनाम अभी भी व्याख्याता बना हुआ है, जबकि नियमों में स्पष्ट उल्लेख है कि 1 जनवरी, 2004 के बाद राजकीय महाविद्यालय के शिक्षकों पर राजस्थान शिक्षा सेवा (महाविद्यालय शाखा) नियम 1986 एवं उनके संशोधन स्वत: लागू होते हैं। इसलिए 2 फरवरी, 2018 से महाविद्यालय के शिक्षकों के लिए लागू पदनाम उच्च शिक्षा संवर्ग में समाहित RVRES शिक्षकों के लिए भी लागू हो जाने चाहिए थे। जबकि ऐसा किया नहीं जा रहा। उन्होंने कहा कि इनके पदनाम परिवर्तन के लिए सरकार को पृथक से नियमों में संशोधन की आवश्यकता भी नहीं है।
जब कनिष्ठ लिपिक के पदनाम बदल दिए तो यहां क्या दिक्कत?
महाविद्यालय और विद्यालय शिक्षा में कनिष्ठ लिपिक का पदनाम परिवर्तित होकर जब कार्यालय सहायक हुआ तो RVRES से आए हुए कनिष्ठ लिपिकों का पदनाम भी स्वत: ही कार्यालय सहायक हो गया। फिर RVRES व्याख्याताओं के पदनाम परिवर्तन के लिए पृथक से नियमों का क्या औचित्य है, यह सरकार नहीं बता पा रही।
रुक्टा ( राष्ट्रीय ) के अध्यक्ष डॉ. दीपक शर्मा ने बताया कि एक ही संवर्ग और समान वेतन के रहते व्याख्याता और सह आचार्य/सहायक आचार्य पद नाम की दोहरी व्यवस्था औचित्यहीन है। साथ ही, आयुक्तालय, कॉलेज शिक्षा द्वारा आरवीआरईएस महाविद्यालय शिक्षकों को सह/सहायक आचार्य के स्थान पर व्याख्याता (आरवीआरईएस) पद से सम्बोधित करना नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध है। इस व्यवस्था से शिक्षक समुदाय में गहरा रोष है। इसलिए शिक्षकों की भावनाओं को समझते हुए RVRES शिक्षकों के पदनाम भी अविलम्ब आचार्य/सह आचार्य/सहायक आचार्य किए जाने चाहिए।
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