पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab Haryana HC) ने जज (Judge) को मोबाइल नोटिफिकेशन के आधार पर जमानत खारिज करने पर फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा—फैसले पॉप-अप नहीं, आदेश पढ़कर दिए जाएं।
चंडीगढ़
मोबाइल स्क्रीन पर एक पॉप-अप चमका… और जज साहब ने उसे मान लिया कानून का अंतिम शब्द। पॉप-अप अलर्ट को “सुप्रीम कोर्ट का आदेश” समझकर अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने अग्रिम जमानत खारिज कर दी—और जब मामला पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट पहुंचा तो वहां हैरानी के साथ नाराज़गी भी साफ झलकी। हाई कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि न्यायिक आदेश किसी नोटिफिकेशन, एप अलर्ट या पोर्टल की हेडलाइन पर नहीं दिए जा सकते—“एक बार आदेश पढ़ लेते, तो फैसला शायद अलग होता।”
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हाई कोर्ट ने यह कड़ा रुख उस समय अपनाया जब सामने आया कि कुरुक्षेत्र (Kurukshetra) के जज ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के एक आदेश की पूरी कॉपी पढ़ने के बजाय एक ऑनलाइन पोर्टल के पॉप-अप को आधार बना लिया। इतना ही नहीं, स्पष्टीकरण मांगने पर जज ने खुद उस पॉप-अप का स्क्रीनशॉट भेजकर बात पक्की कर दी कि फैसला मोबाइल नोटिफिकेशन के भरोसे ही दिया गया था।
जस्टिस सुमित गोयल ने इसे न्यायिक प्रक्रिया के लिए “अस्वीकार्य और गैर-जिम्मेदाराना” बताते हुए कहा कि डिजिटल अलर्ट प्रामाणिक स्रोत नहीं होते। अदालत ने रजिस्ट्रार जनरल को मामले को चीफ जस्टिस के समक्ष रखने का निर्देश दिया है, ताकि जज के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई पर विचार किया जा सके। साथ ही पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के सभी न्यायिक अधिकारियों के लिए टेक्नोलॉजी के जिम्मेदार उपयोग पर विशेष प्रशिक्षण की भी सिफारिश की गई है।
क्या था मामला?
‘रामजी बनाम हरियाणा’ केस में लगाई गई अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 11 जून 2025 को जमानत इसलिए खारिज कर दी क्योंकि एक कानूनी पोर्टल के मोबाइल एप ने “सुप्रीम कोर्ट का नया आदेश” बताते हुए एक पॉप-अप दिखाया। हाई कोर्ट ने जब आधार पूछा, तो जज ने बेझिझक कहा कि हाँ, उन्होंने वही हेडलाइन पढ़कर फैसला दे दिया—यहां तक कि उसका स्क्रीनशॉट भी भेज दिया। यही वह क्षण था जब हाई कोर्ट की भौंहें तन गईं।
‘जज ने आदेश पढ़ा ही नहीं’ — कोर्ट की तल्ख टिप्पणी
जस्टिस सुमित गोयल ने कहा कि यह साफ दिखता है कि जज ने न तो सुप्रीम कोर्ट का पूरा आदेश पढ़ा और न ही यह समझने की कोशिश की कि अदालत की वास्तविक मंशा क्या थी। हाई कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को मामले को चीफ जस्टिस के समक्ष रखने का निर्देश दिया है, ताकि जज के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई पर विचार किया जा सके।
टेक्नोलॉजी, हाँ—but ज़िम्मेदारी के साथ
हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मोबाइल एप, डिजिटल पोर्टल और कानूनी ब्लॉग पर दिखने वाले छोटे-छोटे नोटिफिकेशन किसी भी तरह से प्रामाणिक कानूनी स्रोत नहीं हैं। न्यायिक आदेश हमेशा रिपोर्टेड जजमेंट, आधिकारिक प्रकाशनों या प्रमाणित प्रतियों पर आधारित होने चाहिए।
साथ ही कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के सभी न्यायिक अधिकारियों को ऑनलाइन सूचना और टेक्नोलॉजी के जिम्मेदार उपयोग पर विशेष प्रशिक्षण देने के निर्देश भी जारी किए।
इस पूरे प्रकरण ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है—
क्या आज के डिजिटल दौर में त्वरित जानकारी की आदत कहीं न्याय की गहराई को निगल तो नहीं रही?
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