इस बीच 15 जनवरी को सरकार के साथ हुई किसान नेताओं की बातचीत बेनतीजा रही। अब यह वार्ता 19 जनवरी को होगी। दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन का शुक्रवार को 50वां दिन था।
अड़ियल रुख अपना रहे किसान नेता
हालात अब ये हैं कि सरकार के साथ कई दौर की बातचीत, चार में से दो मांगों पर सहमति, देश की सबसे बड़ी अदालत का वार्ता से गतिरोध को दूर करने की कोशिशें, लेकिन आंदोलनरत किसान अब भी बीच की राह ढूंढ़ने को तैयार नहीं दिखते हैं और कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े दिखते हैं। सरकार के साथ कई दौर की बातचीत और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बावजूद कुछ किसान संगठन नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हुए हैं। इस बीच देशभर के किसानों संगठनों का नए कृषि सुधार कानूनों के समर्थन करने का सिलसिला भी लगातार जारी है। अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के बैनर तले देश भर के दर्जन से ज्यादा किसान संगठनों ने तीनों किसान कानूनों पर अपना समर्थन जताया। इन किसान संगठनों में उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना के किसान संगठन शामिल थे।
57 फीसदी लोग चाहते हैं आंदोलन अब समाप्त हो
हाल ही में एक निजी प्रसारण कंपनी ने इस किसान आंदोलन को लेकर किए गए सर्वे के नतीजों को जारी किया। इसके मुताबिक इस आंदोलन को पूरे देश में व्यापक समर्थन नहीं मिल रहा है। आखिर देश का मूड है क्या, आम लोग दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसान संगठनों को लेकर क्या सोचते हैं, इसी के जानने की कोशिश इस सर्वेक्षण में की गई। देश के 22 राज्यों में किए गए गए इस सर्वेक्षण के मुताबिक करीब 54 प्रतिशत लोगों ने इन कृषि कानूनों का समर्थन किया है, जबकि करीब 57 प्रतिशत लोगों ने कहा कि किसानों को अपना विरोध प्रदर्शन अब समाप्त कर देना चाहिए। गौरतलब है कि किसान संगठनों के समर्थन के अलावा, ग्रामीण भारत में काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों के समूहों ने पूरे देशभर से आम किसानों के करीब सवा तीन लाख हस्ताक्षर केंद्र सरकार तक पहुंचाए हैं, जो दिखाते हैं कि कैसे देशभर से आम हो या खास किसान हो या मजदूर कृषि सुधारों के समर्थन में लगातार आगे आते रहे हैं।