परिश्रम
डॉ. विनीता राठौड़
जाने भी दो यारो
नाहक डर -डर कर यूं क्यूं जीना
हरि इच्छा के बिना है असंभव
इस दुनिया में जीना और मरना
तो हो कर निडर जीवन है जीना
जाने भी दो यारो
सदा पूर्णतावादी होना
खास फर्क नहीं इससे पड़ता
गर काम हो थोड़ा बिखरा-बिखरा
है जरूरी अथक परिश्रम जारी रखना।
जाने भी दो यारो
प्रयास सभी को खुश करने का
है असंभव सभी को राजी रखना
कोशिश बस इतनी सी जारी रखना
कि दिल किसी का कभी दुखे ना।
जाने भी दो यारो
थोथे रिश्तों को जबरन ढोना
व्यर्थ है खुदगर्जों का साथ निभाना
है सुखद अपने ही हाल में
मस्त मलंग हो जीवन जीना।
जाने भी दो यारो
विगत गलतियों का रोना यूं रोना
भूल मानव से हो सकती है
दोहराव नहीं हो उनका फिर से
बस इतना सा प्रयास है करना।
जाने भी दो यारो
खुद का खुद पर अविश्वास यूं करना
दूजों का विश्वास यदि हासिल है करना
तो स्वयं पर भरोसा तुम्हे होगा जताना
आत्मविश्वास को बनाए रखना।
जाने भी दो यारो
व्यर्थ बातों पर चिंता करना
जिन पर नियंत्रण नहीं है अपना
सर्वत्र विराजमान जग नियन्ता
डोर उसी की थामे रखना।
(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा, राजसमन्द में प्राणीशास्त्र की सह आचार्य हैं)
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